नैनीझील का लगातार गिरता जलस्तर है खतरे की घंटी

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    नैनीताल और उत्तराखण्ड की शान कही जाने वाली नैनीझील का जलस्तर बीते दो सालों से लगातार गिरता जा रहा है। साल 2011 के मुकाबले में इस साल झील में लगभग 6 फ़ीट पानी कम रह गया है। पहाड़ों में पड़ती बरसात के स्तर में लगातार गिरावट और शहर में बढ़ती आबादी के बोझ के चलते असामान्य रूप से गिरता ये जलस्तर खतरे की घंटी दे रहा है।

    नैनीझील में हमेशा से ही शून्य जलस्तर से ऊपर और नीचे के जलभराव को नापा जाता है। यहाँ बरसातों के मौसम में झील जहाँ 11 फुट की अपनी क्षमता पूरी करने के बाद अतिरिक्त जल की निकासी करती है तो गर्मियों के जून माह तक इसका जलस्तर माइनस आठ से दस इंच तक गिर जाता है।

    बीते कुछ सालों का अगर आंकलन करें तो पिछले दो सालों से झील के जलस्तर में चौकाने वाली गिरावट देखने को मिली है। 2014 की 20 फरवरी को जहाँ जलस्तर प्लस 4.50 फ़ीट था वहीँ 20 फरवरी 2015 को जलस्तर अचानक आश्चर्यजनक रूप से घटकर माइनस 4.6 इंच के न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया था। इस साल ये जलस्तर अबतक के सबसे न्यूनतम माइनस 6.6 इंच तक पहुँच चुका है।

    पिछले कुछ वर्षों में झील के जलस्तर की जानकारी देकर अपने पक्ष को और भी साफ़ करने की कोशिश करते हैं।

    • 20 फरवरी 2011 जलस्तर प्लस 5.10 फ़ीट
    • 20 फरवरी 2012 जलस्तर प्लस 4.85 फ़ीट
    • 20 फरवरी 2013 जलस्तर प्लस 5.4 फ़ीट
    • 20 फरवरी 2014 जलस्तर प्लस 4.50 फ़ीट
    • 20 फरवरी 2015 जलस्तर माइनस 4.6  इंच
    • 20 फरवरी 2016 जलस्तर माइनस 5.6 इंच

    20 फरवरी 2017 को नैनीझील का जलस्तर माइनस 6.6 इंच पहुँच गया है जो गर्मियों तक अगर अच्छी बरसात नहीं होती है तो कहाँ पहुंचेगा ये अनुमान लगाया जा सकता है। लोक निर्माण विभाग के जे.ई.महेन्द्र पाल बताते हैं कि “विभाग ने डाँठ(निकासी गेट)की सुरक्षा के लिए इन्हें अच्छी तरह से सुधारा है। उन्होंने बताया कि इसके अलावा झील की सुरक्षा दीवार ठीक करने के लिए पर्यटन विभाग ने बहुत काम किया है।”

    नैनीताल की इस प्राकृतिक झील में जल संचार के लिए सन 1888 में अंग्रेजी शासनकाल में 62 नालों का निर्माण करा गया था जो चारों तरफ से पानी को झील तक पहुँचाने का काम किया करते थे। इसके अलावा कुछ साल पहले तक सूखाताल झील भी नैनीझील का बड़ा जलस्रोत माना जाता था लेकिन किन्हीं कारणों से सूखाताल में जमा होने वाले पानी को सीधे नैनीझील से होकर बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। एक मुख्य कारण शहर में बनी सैकड़ों सीमेंट की सड़कें भी हैं जो पानी को सीधे झील और फिर बाहर का रास्ता दिखाती हैं। इससे पहले यही पानी इन सड़कों में रीसकर धरती की कई परतों को पार करते हुए प्राकृतिक रूप से स्वच्छ होकर झील तक लंबे समय बाद पहुँचता था। अब शहर में आबादी और होटलों की संख्या लगातार बढ़ने के बाद जहाँ उपभोग के लिए पानी काफी मात्रा में चाहिए पड़ता है वहीँ घरों और होटलों की पानी की टंकियों में भरा पानी भी झील के जलस्तर को काफी कम कर देता है।

    नैनीझील के इतिहास पर अगर नजर डालें तो पुराणों में सरोवर नगरी नैनीताल को ऋषियों की तपोस्थली के रूप में भी जाना जाता है । पुराणों में ही वर्णित है कि यहाँ अत्रि, पुलस्त्य और पुलह नामक ऋषियों ने तपस्या करते हुए अपने तपोबल से मानसरोवर का पानी यहाँ खींच लिया था। बाद में सन 1821 में अंग्रेजी शाशक यहाँ पहुंचे और इस खूबसूरत शहर का झील किनारे निर्माण हुआ। नैनीताल के व्यवसाईकरण के बाद से ही लगातार जैसे नैनीझील के अस्तित्व में ख़तरा सा मंडराने लगा है। झील के आसपास की गन्दगी और मलुवा इसके भीतर जाकर गाद बनती है जो इसके आक्सीजन के स्तर को शून्य तक गिरा देती है। ऐसे में अब झील को एरिएशन द्वारा कृतिम आक्सीजन देकर जीवित रखा गया है। वोटों की राजनीती करने वाले शियासतदांन भी इस निर्जीव झील के लिए कम ही सोचते हैं। लाखों लोगों को रोजगार देने वाली इस झील की उम्र भी कम ही रह गई दिखती है।