देश-प्रदेश की प्रतिष्ठित और ऐतिहासिक नैनीताल विधानसभा में राज्य बनने के बाद हर विधानसभा चुनाव में कभी भी कोई पार्टी और कोई उम्मीदवार लगातार दूसरी बार तथा दो बार नहीं जीत पाया है। अलबत्ता यह जरूर हुआ है कि नैनीताल का कोई भी विधायक विपक्ष में नहीं बैठा है।
यह रिकॉर्ड राज्य बनने से पूर्व से बरकरार है जबकि राज्य बनने के बाद नैनीताल का केवल एक ही विधायक मंत्री बन पाया है और वह भी राज्य बनने से पूर्व जीतकर आने वाला। राज्य बनने के बाद नैनीताल का कोई भी विधायक राज्य में मंत्री नहीं बन पाया है। हालांकि इस बार पहली बार नैनीताल विधानसभा में यह रोचक स्थिति है कि उम्मीदवार पिछले ही हैं, लेकिन अलग दलों से। अब देखने वाली बात होगी कि इस बार इनमें से कितने मिथक आगामी विधानसभा चुनाव में टूटते हैं, या बरकरार रहते हैं।
उत्तराखंड बनने से लगातार चार बार बंशीधर भगत नैनीताल विधानसभा से भाजपा के विधायक रहे। इस कारण ही राज्य की अंतरिम विधानसभा में वह मंत्री बने। अब तक वह ही नैनीताल के अंतिम विधायक होने का तमगा लगाए हुए हैं, जो मंत्री बने। राज्य बनने के बाद 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में डॉ. नारायण सिंह जंतवाल उत्तराखंड क्रांति दल के टिकट पर लड़ते हुए 2347 मतों के अंतर से जीते। आगे 2007 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के खड़क सिंह बोहरा ने जंतवाल को कांटे के मुकाबले में मात्र 367 वोटों के अंतर से हराकर यह सीट जीती।
वर्ष 2012 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार हेम आर्य को कांग्रेस उम्मीदवार सरिता आर्य से 6308 वोटों के अंतर से हारना पड़ा और सीट 23 वर्षों के बाद कांग्रेस के खाते में चली गई। आगे 2017 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सरिता आर्य को भाजपा उम्मीदवार संजीव आर्य ने 6308 वोटों के अंतर से हराया। तब संजीव को 30 हजार 36 व सरिता आर्य को 22 हजार 789 वोट मिले।
अब 2022 के चुनाव में संजीव आर्य भाजपा से कांग्रेस और सरिता आर्य कांग्रेस से भाजपा में आकर आमने-सामने हैं तो दोनों के समक्ष ही अपनी जीत के साथ कई मिथक तोड़ने और बनाए रखने की चुनौती भी होगी।
विकास की बात करें तो पिछले 15 वर्षों से अनुसूचित जाति के कोटे की इस सीट में पर्यटन नगरी व पर्यटन से जुड़ा क्षेत्र होने के बावजूद राज्य बनने के 21 वर्षों में चारों विधायक विधानसभा मुख्यालय को एक बड़ी पार्किंग, पर्यटन का एक भी कोई बड़ा आयाम, कोई भी बड़ा विकास कार्य नहीं दिला पाए हैं। जबकि नगर की समस्याएं भी सीवर लाइन व नगर के आधार बलियानाला में जारी भूस्खलन की तरह बढ़ती जा रही हैं। जबकि निकटवर्ती गांवों की स्थिति भी ‘दीपक तले अंधेरा’ जैसी है। जहां दूर-दराज के गांवों तक सड़क पहुंचाने के दावे किए जाते हैं, जमीरा व गैरीखेत सरीखे नगर के कई निकटवर्ती गांवों के लोग आज भी पांच किलोमीटर तक पैदल चलने को मजबूर हैं।