अंतर्कलह और भितरघात से दोनों राष्ट्रीय दल परेशान

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उत्तराखंड

भले ही मतदान ईवीएम में कैद हो गया है, लेकिन प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल घमासान में जुटे हुए हैं। हार जीत के दावे किए जा रहे हैं। दोनों दलों में अंतर्कलह और भितरघात की खबरों ने पार्टी को असहज कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का सोशल मीडिया में एक ट्वीट तैर रहा है, वह भले ही सच नहीं है लेकिन लोगों के भीतर उसको लेकर विभिन्न चर्चाएं हैं। इसी प्रकार पार्टी के दो वरिष्ठ विधायकों ने आरोप प्रत्यारोप लगाए हैं जिस पर भी तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं हैं।

इस संदर्भ में भाजपा प्रवक्ता रवीन्द्र जुगरान का कहना है कि जो ट्वीट सोशल मीडिया में चल रहे हैं, उनमें कोई सत्यता नहीं है। भाजपा में किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं है और पार्टी पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगी। दूसरी ओर हरीश रावत के मुख्य प्रवक्ता और प्रदेश उपाध्यक्ष सुरेन्द्र कुमार का कहना है कि उत्तराखंड की जनता परिवर्तन की वाहक है और इस बार भी परिवर्तन होगा।

प्रदेश में सरकार किसकी बनेगी यह भले ही 10 मार्च को आने वाले चुनाव परिणामों से तय हो, लेकिन मतदान के बाद भाजपा के सिटिंग विधायक और उम्मीदवार जिस तरह से खुलकर चुनाव में अपनी ही पार्टी के नेताओं पर भितरघात करने के आरोप लगा रहे हैं उनकी गूंज दिल्ली तक सुनाई दे रही है। वर्तमान चुनाव में अगर भाजपा को अपेक्षित परिणाम नहीं मिलता तो वह इन भितरघात की खबरों की पुष्टि करने वाला ही होगा।

हालांकि अभी मुख्यमंत्री धामी पार्टी के नेताओं को संयम बरतने की नसीहत देते हुए भाजपा की जीत को पक्का बता रहे हैं। लेकिन हर रोज आने वाली इन खबरों को लेकर भाजपा हाईकमान ने भी प्रदेश पार्टी संगठन से इसकी रिपोर्ट मांगी है जिससे मामले की गंभीरता को समझा जा सकता है। मीडिया में प्रदेश संगठन में बदलाव की खबरों ने भी यह पुख्ता कर दिया है कि कहीं न कहीं दाल में काला तो जरूर है। भितरघात का यह मुद्दा भाजपा पर कहीं भारी न पड़ जाए, इसे लेकर दून से दिल्ली तक बेचैनी पैदा हो गई है।

चुनाव से पूर्व ही चेहरे पर चुनाव लड़ने के मुद्दे पर दो धड़ोंं में बटी कांग्रेस में एक बार फिर मतदान के बाद घमासान मचा हुआ है। कांग्रेस हाईकमान ने भले ही चुनाव से पूर्व हरीश रावत की लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें सीएम का चेहरा घोषित न किया हो, लेकिन वह अब फिर सार्वजनिक रूप से यह कह रहे हैं कि या तो वह मुख्यमंत्री बनेंगे या फिर घर बैठेंगे। तीसरा कोई विकल्प नहीं है। प्रीतम सिंह का कहना है कि कांग्रेस चुनाव जीत रही है और सीएम के नाम पर विधायक और कांग्रेस हाईकमान द्वारा ही फैसला लिया जाएगा।

सवाल यह है कि चुनाव परिणाम से पूर्व ही सीएम के नाम को लेकर कांग्रेसी क्यों आमने-सामने हैं? अभी तो चुनाव परिणामों के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। कांग्रेस के कुछ नेताओं का कहना है कि हरीश रावत चुनाव परिणाम से पूर्व ही इस तरह के बयान देकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह उनके अंदर का डर है कि कहीं कांग्रेस के जीतने के बाद किसी और को सीएम की कुर्सी पर न बैठा दिया जाए। सूबे का सीएम कोई दलित चेहरा हो तो वह अपनी दावेदारी छोड़ सकते हैं जैसे वह खुद भी बयान देते रहे हैं। खैर किसकी बनेगी सरकार और कौन बनेगा मुख्यमंत्री 10 मार्च के बाद तय हो जाएगा लेकिन भितरघात व सीएम की कुर्सी के चलते दोनों दलों में बेचैनी जरूर देखी जा रही है।