उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली में पर्यटन की दृष्टि से कई ऐसे गुमनाम पर्यटन स्थल हैं, जो आज भी देश दुनिया की नजरों से दूर हैं। यदि ऐसे स्थानों को उचित प्रचार और प्रसार के जरिये देश, दुनिया को अवगत कराया जाये तो इससे न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा अपितु स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध हो पायेंगे। इससे रोजगार की आस में पलायन के लिए मजबूर हो रहे युवाओं के कदम अपने ही पहाड़ में रुक पायेंगे।
- दुनिया की नजरों से दूर हिमालय में मौजूद प्रकृति की अनमोल गुमनाम नेमत
देवाल विकास खंड के वाण गांव के दो ट्रैकर देवेन्द्र बिष्ट और हीरा सिंह गढ़वाली ने एक बेहद खूबसूरत और गुमनाम मोनाल ट्रैक को खोज निकाला। इस पूरे ट्रैक में आपको हिमालय दर्शन के जरिए हिमालय को करीब से देखने का मौका मिलेगा। विगत दिन इस ट्रैक का भ्रमण करके लौटे ट्रैकर लक्ष्मण सिंह और कुंवर सिंह ने बताया कि यहां का अभिभूत कर देने वाला अप्रतिम सौंदर्य हर किसी को आनंदित करता है। यहां से सनराइज और सर्दियों में विंटर लाइन बेहद रोमांचित करता है।
हिमालय में मौजूद प्रकृति की अनमोल नेमत है मोनाल ट्रैक
पर्यटकों के लिए मोनाल ट्रैक किसी रहस्य और रोमांच से कम नहीं हैं। चारों ओर जहां भी नजर दौड़ाओ हिमालय की केदारनाथ, चौखंभा, नंदा देवी, हाथी घोड़ा पर्वत, त्रिशूल सहित गगनचुम्बी हिमाच्छादित चोटियों और मखमली घास के बुग्याल के दीदार होते हैं। लगभग 12,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है मोनाल ट्रैक। यहां से रामणी के बालपाटा, नरेला बुग्याल नजर आता है तो दूसरी तरफ कैल और पिंडर घाटी के साथ ही मखमली घास के बुग्याल वेदनी और आली दिखाई देता है, उसके पास रहस्यमयी रूपकुण्ड और ब्रहकमल की फुलवारी भगुवासा नजर आती है। यहां कई जगहों पर राज्य पक्षी मोनालों का झुंड आपको विचरण करता हुआ दिखाई देगा।
देवाल ब्लाॅक के वाण गांव निवासी और रूपकुण्ड टूरिज्म के सीईओ देवेन्द्र सिंह बिष्ट कहते हैं कि यहां मोनालों की प्रचुरता की वजह से ही स्थानीय लोग इसे मुन्याव ट्रैक यानी मोनाल ट्रैक कहते हैं। वे कहते हैं कि इस ट्रैक पर आपको हिमालय के सदूरवर्ती गांव, बुग्यालों, ताल, पेड़ों, जंगली जानवरों, पक्षियों और पहाड़ की संस्कृति के दीदार होते हैं। यहां से हिमालय की कई पर्वत श्रेणी और मखमली बुग्यालों को देखा जा सकता है। यहां राज्य वृक्ष बुरांस, राज्य पक्षी मोनाल, राज्य पशु कस्तूरी मृग भी देखने को मिलते हैं। इसके अलावा हजारों प्रकार के फूल और वनस्पति भी रोमांचित कर देती हैं। इस ट्रैक को वन्य जीव टूरिज्म के रूप में भी विकसित किया जा सकता है।
गढभूमि एडवेंचर के सीईओ हीरा सिंह गढ़वाली कहते हैं कि मोनाल ट्रैक प्रकृति का अनमोल खजाना है। हालांकि इन तमाम खूबियों के बाद भी मोनाल ट्रैक आज भी देश दुनिया के पर्यटकों की नजरों से ओझल है। सरकार और पर्यटन विभाग को चाहिए की मोनाल ट्रैक को पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए विशेष कार्ययोजना बनाई जानी चाहिए ताकि पर्यटन को बढ़ावा मिले और साथ ही स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर भी मिलें।
ऐसे पहुंचा जा सकता है मोनाल ट्रैक
- ऋषिकेश से वाण गांव 275 किलोमीटर वाहन से
- अथवार काठगोदाम से वाण तक 250 किमी वाहन
- वाण से कुकीना-खाल चार किलोमीटर पैदल
- कुखीना खाल से हुनेल पांच किमी
- हुनेल से मोनाल टाॅप तीन किमी पैदल