देहरादून। एनजीटी पर्यावरण को बचाने की कोशिश में जुटा है लेकिन विकास है कि पर्यावरण पर हावी है।बीते दिनों एनजीटी ने ऋषिकेश,हरिद्वार और उत्तरकाशी में पॉलिथिन व प्लास्टिक के प्रयोग पर बैन लगाया जिस फैसले का स्वागल लोगों ने दिल खोल के किया है। इस बार फिर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण(एनजीटी) ने उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में गंगा किनारे से पचास मीटर के इलाके को ‘नो डेवलपमेंट जोन’ धोषित किया है।
नए आर्डर के मुताबिक अब इस इलाके में गंगा किनारे पचास मीटर के दायरे में किसी तरह का कच्चा या पक्का निर्माण नहीं किया जा सकेगा। हालांकि ये अलग बात है कि राज्य में सबसे ज्यादा नदियां होने के साथ ही नदी के किनारे अतिक्रमण की चपेट में हैं।
हालांकि न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने उत्तराखंड में गंगा की सफाई मामले मे दिए गए अपने हालिया फैसले में बदलाव करते हुए कहा है कि पहाड़ी इलाके मे नदी टेडे-मेड़े और संकरे रास्ते से होकर गुजरती है। ऐसे में नदी के बीच से 100 मीटर का इलाका नहीं नापा जा सकता। लिहाजा नदी के किनारे से 50 मीटर का इलाका ”नो डेवलेपमेंट जोन” होगा। जबकि पचास मीटर के बाद 100 मीटर तक का भूभाग रेग्यूलेटरी जोन कहलाएगा।
एनजीटी के बडे़ फैसले के बाद बड़ा सवाल यह है कि उत्तराखंड में गंगा किनारे संचालित हो रही व्यवसायिक गतिविधियों को काबू करने के लिए सरकार क्या कदम उठाती है। दरअसल राज्य में उत्तरकाशी से लेकर हरिद्वार तक पचास मीटर के दायरे में गंगा किनारे कई कारोबार संचालित हो रहे हैं।