चंदेरा बढ़वाल याद करते हुए कहते हैं कि, “मैंने 15 साल की उम्र में यहाँ एक रुपये में चाय बेचना शुरु किया था। कभी कभी मैं दिनभर में महज 15 रुपये ही कमा पाता था, और इन सभी पैसों को मैंने इस दुकान को और आरामदायक बनाने में इस्तेमाल किया।”
यह चाय कि दुकान भगवान बद्रीनाथ के मंदिर के कपाट खुलने के साथ ही खुलती है और कपाट बंद होने के साथ साथ बंद हो जाती है। चंदेरा ने 16 नवंबर, 2019 को आख़री चाय इस दुकान से बेची थी। उनके लिये पिछला यात्रा सीज़न अच्छा गया। उनका पूरा परिवार इस दुकान से होने वाली कमाई पर निर्भर रहता है।
फ़ोन पर बात करते हुए चंदेरा कहते हैं कि, “कोरोना महामारी का असर भारत की इस आखिरी चाय की दुकान पर भी पड़ा है। 2013 में केदारनाथ आपदा के बाद भी काम पर असर पड़ा था लेकिन, तब भी कुछ पर्यटक आते रहते थे। लेकिन, इस महामारी ने काम को बुरी तरह से प्रभावित किया है। नवंबर 2019 से हमने दुकान नहीं खोली है। पर्यटक तो है नहीं साथ ही स्थानीय लोग भी ज़्यादा बाहर नहीं आ रहे हैं। हम अपनी बचत की रक़म से अपना पालन कर रहे हैं।”
आने वाले भविष्य के बारे में पूछने पर चंदेरा कहते हैं कि, “हर रात सोने से पहले हमारा परिवार यह प्रार्थना करता है कि देश जल्द से जल्द इस महामारी से जीत हासिल कर ले। हमारा भविष्य तो भगवान बद्रीनाथ के हाथ में है।”