एक जनपद, दो उत्पाद योजना से चमोली की हस्तशिल्प कला को नयी पहचान मिलने की जगी आस

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एक जनपद, दो उत्पाद योजना से चमोली की हस्तशिल्प कला को नयी पहचान मिलने की उम्मीद जगी है। गत दिनों उत्तराखंड में एक जनपद दो उत्पाद (ओडीटीपी) योजना लागू हो गई है। इसके तहत बाजार में मांग के अनुरूप कौशल विकास, डिजाइन विकास और कच्चे माल के जरिये नई तकनीक के आधार पर प्रदेश जिले में दो उत्पादों का विकास किया जाएगा।

उत्तराखंड के सभी 13 जिलों में वहां के स्थानीय उत्पादों की पहचान के अनुरूप उनका विकास करना है। इससे स्थानीय काश्तकारों एवं शिल्पकारों के लिए जहां एक ओर स्वरोजगार के अवसर पैदा होंगे, वहीं दूसरी ओर हर जिले के स्थानीय उत्पादों की विश्वस्तरीय पहचान बन सकेगी।

गौरतलब है कि उत्तराखंड में करीब 50 हजार से अधिक हस्तशिल्पि हैं जो अपने हुनर से हस्तशिल्प कला को संजोये हुए है। ये हस्तशिल्पि रिंगाल, बांस, नेटल फाइबर, ऐपण, काष्ठ शिल्प और लकड़ी पर बेहतरीन कलाकारी के जरिए उत्पाद तैयार करते आ रहे हैं।

युवा पीढ़ी अपनी पुश्तैनी व्यवसाय को आजीविका का साधन बनाने में दिलचस्पी कम ले रही है। परिणामस्वरूप आज हस्तशिल्प कला दम तोड़ती और हांफती नजर आ रही है।

सीमांत जनपद चमोली जनपद के कुलिंग, छिमटा, पज्याणा, पिंडवाली, डांडा, मज्याणी, बूंगा, सुतोल, कनोल, मसोली, टंगणी, बेमरू, किरूली गांव हस्तशिल्पियों की खान है। इन गांवों के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन हस्तशिल्प है।

चमोली के दरमानी लाल के रिंगाल उत्पाद का हर कोई है मुरीद-

उम्र के जिस पडाव पर अमूमन लोग घरों की चाहरदीवारी तक सीमित होकर रह जाते हैं, वहीं सीमांत जनपद चमोली की बंड पट्टी के किरूली गांव निवासी 65 वर्षीय दरमानी लाल इस उम्र में हस्तशिल्प कला को नयी पहचान दिलाने की मुहिम में जुटे हुए हैं। वे विगत 42 सालों से रिंगाल के विभिन्न उत्पादों को आकार दे रहें हैं। रिंगाल के बने कलमदान, लैंप सेड, चाय ट्रे, नमकीन ट्रे, डस्टबिन, फूलदान, टोकरी, टोपी, स्ट्रैं सहित विभिन्न उत्पादों को इन्होंने आकार दिया गया है। इनके बनाए गए उत्पादों का हर कोई मुरीद हैं।

रिंगाल से रोजगार, पारम्परिक हस्तशिल्प कला को मिली पहचान

हिमालयी महाकुंभ नंदा देवी राजजात यात्रा और नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा में रिंगाल की छंतोली बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। रिंगाल की छंतोली के बिना आप नंदा देवी राजजात यात्रा की परिकल्पना नहीं कर सकते हैं। रिंगाल के विभिन्न उत्पाद आज भी लोगों को बेहद भाते हैं। रिंगाल से पहले जहां केवल पांच या छह प्रकार का सामान बनाया जाता था, वहीं अब 200 से अधिक प्रकार का सामान बनाया जा रहा है।

ये हैं रिंगाल-

रिंगाल उत्तराखंड के जंगलों में पाया जाने वाला एक पेड़ है। ये बांस प्रजाति का है। बांस और रिंगाल के बीच अंतर बस इतना है कि बांस आकार में बहुत बड़ा होता है और रिंगाल थोड़ा छोटा। रिंगाल और बांस की लकड़ियों की बनावट और पत्तियां लगभग एक समान ही होती हैं। इसीलिए रिंगाल को बोना बांस भी कहा जाता है। जहां बांस की लम्बाई 25-30 मीटर होती है वहीं रिंगाल पांच से आठ मीटर लंबा होता है। रिंगाल 1000-7000 फीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है क्योंकि रिंगाल को पानी और नमी की आवश्यकता ज्यादा रहती है वहीं बांस सामान्य ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आसानी से पाया जाता है। रिंगाल पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के अलावा भूस्खलन को रोकने में भी सहायक होता है।