देहरादून। उत्तराखंड में 748 स्कूल ऐसे हैं जिनमें एक भी छात्र नहीं है। इनमें 200 से अधिक स्कूल अल्मोड़ा और पौड़ी मे हैं। साल 2000 राज्य की स्थापना के बाद से यह दो पहाड़ी जिले ऐसे है जिनमें सबसे ज्यादा पलायन हुआ है, विधानसभा सत्र में सरकार ने इस बात की सूचना दी।
भाजपा विधायक एस.एस जीना के एक प्रश्न के जवाब में, राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने 748 खाली स्कूलों के बारे में कहा कि, “अधिकतम 581 स्कूल 10 पहाड़ी जिलों में स्थित हैं, इन खाली विद्यालयों को इनके रखरखाव के लिए ग्राम पंचायतों को सौंपने की प्रक्रिया चल रही थी।”
मंत्री द्वारा दिए गए आंकड़े से यह साफ पता चलता है कि तीन मैदानी जिलों में, छात्रों के बिना देहरादून में सबसे ज्यादा संख्या (49) स्कूल थे, जबकि उधम सिंह नगर और हरिद्वार के जिलों में ऐसे चार स्कूल हैं।
नकली डिग्री पर नियुक्त शिक्षकों के बारे में भाजपा के विधायक गणेश जोशी ने एक और सवाल के जवाब में पांडेय ने कहा कि, “इस मामले में जांच चल रही है, 2012 की शुरुआत में पांच साल में नियुक्त किए गए 6,247 शिक्षकों के शैक्षिक प्रमाण पत्र की जांच विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों द्वारा की जा रही है।”
867 शिक्षकों की जांच पूरी हो चुकी है। “इनमें से, 79 शिक्षकों के खिलाफ विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा जांच की जा रही है, 22 शिक्षकों को पहले ही टर्मिनेट कर दिया है,” उन्होंने सदन को बताया।
हालांकि, जब भाजपा विधायक के एस. रावत ने अन्य पिछड़ा जाति (ओबीसी) उम्मीदवारों के लिए आरक्षित प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों के खाली पदों के बैकलॉग पर एक प्रश्न उठाया, तो पांडे ने जवाब दिया कि ऐसा कोई बैकलाग नहीं है। इसपर रावत ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत लिए गए सूचना का हवाला देते हुए दावा किया कि 1000 से अधिक ऐसी रिक्तियों का एक बैकलॉग था। जब विधायक ने कहा कि इस मुद्दे पर सुनवाई उच्च न्यायालय में लंबित है तो शिक्षा मंत्री ने तंग आकर कहा कि जब यह मुद्दा कोर्ट में है तो इसपर बात करने का कोई फायदा नहीं है।
कांग्रेस के विधायक करण मेहरा के सवाल के जवाब में पांडेय ने कहा कि जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया गया है कि वे स्कूली शिक्षकों को जनगणना अभियान और चुनाव से संबंधित अन्य कर्तव्यों में शामिल न करें। “यह कदम उठाया गया है ताकि शिक्षक शिक्षण पर ध्यान केंद्रित कर सकें, जो उनका प्राथमिक कर्तव्य है,” पांडे ने कहा।