यहां गुफाओं का है जाल मगर कोई जा नहीं सकता

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पिथोरागढ, गुफाओं का जहां बना है मायाजाल, और प्राकृतिक सौंदर्यता का जहां है भण्डार, क्यो गुमनामी के अंधेरों में है? और क्यों राज्य बनने के बाद भी पर्यटकों से कोसो दूर हैं एसे एेतिहासिक स्थल ?

गुफाओं को पर्यटन सर्किट से जोड़ कर सैलानियों को नैसर्गिक सौंदर्य के साथ आध्यात्म से जोड़ने का सरकार का दावा 17 वर्षों में भी साकार नहीं हो सका है। जिले की एक दर्जन गुफाओं में केवल पाताल भुवनेश्वर को छोड़ अन्य गुफाएं आज भी गुमनाम हैं। इन गुफाओं का इतिहास भी अंधेरे में भटक रहा है।
सीमांत जिले का गंगावली क्षेत्र गुफाओं के मामले में धनी है। इस क्षेत्र में पाताल भुवनेश्वर जैसी विख्यात गुफा के अलावा आठ अन्य गुफाएं भी प्रकाश में आई हैं। इन गुफाओं तक आज भी पहुंचना संभव नहीं हुआ है। राज्य बनने के बाद इस क्षेत्र को गुफाओं की घाटी बना कर गुफाओं का विकास और सौंदर्यीकरण की घोषणाएं हुईं। प्रदेश में सत्तासीन होने वाली सरकारें इसे पर्यटन सर्किट से जोड़ने का दावा करती रहीं। गंगावली क्षेत्र की गुफाएं और धार्मिक पर्यटन स्थलों को जोड़ते हुए इसे हिमनगरी मुनस्यारी से जोड़ने का प्रस्ताव था।
पर्यटन सर्किट के अनुसार गंगावली क्षेत्र (गंगोलीहाट और बेरीनाग) से पर्यटक स्थल चौकोड़ी, धार्मिक स्थल थल से होते हुए मुनस्यारी को जुड़ना था। पर्यटकों को गुफाओं के रोमांच से आस्था की तरफ ले जाकर हिमालय के दर्शन की योजना इस सर्किट का मूल आधार था। परंतु आज तक जिले की भोलेश्वर, कोटेश्वर, शैलेश्वर, मुक्तेश्वर, महेश्वर, डांडेश्वर जैसी गुफाएं अंधेरे में हैं। इन गुफाओं तक पहुंचने के लिए न तो मार्ग हैं और न ही इन गुफाओं का प्रचार-प्रसार हो सका है। आज भी ये गुफाएं केवल स्थानीय लोगों की आस्था तक सिमट कर रह गई हैं। पर्यटक लाख चाहने के बाद भी इन गुफाओं का दीदार नहीं कर पा रहे हैं।