पंचेश्वर बांध भारत-नेपाल के बहुत बड़े इलाके की ऊर्जा और सिंचाई की जरुरतों को भले ही पूरी करे, लेकिन हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। भारत-नेपाल के बीच सरकार दुनिया के सबसे बड़े बांध को बनाने की योजना पर लगातार आगे बढ़ रही है। ऐसे में ये सवाल उठना लाज़मी है कि टिहरी से तीन गुना बड़ी पंचेश्वर बांध की झील किस तेजी से पर्यावरण को प्रभावित करेगी।
पंचेश्वर बांध को लेकर जिस प्रकार से बैठकों में विरोध का स्वर देखने को मिला यह भी चिंता का विषय है। बांधों के प्रभाव का बारीक अध्ययन करने वालों की मानें तो इससे जहां पहाड़ों में भू-स्खलन की घटनाओं में बढ़ोत्तरी देखने को मिलेगा। वहीं, इस झील से पैदा होने वाले मानसून से बादल फटने की संभवनाएं बनी रहेंगी। पहाड़ों में साल भर नमी और कोहरे की मार झेलनी पड़ सकती है। अतिसंवेदनशील ज़ोन फाइव में प्रस्तावित इस बांध से जहां भूकम्प के झटकों में इजाफा होने की आशंका है, वहीं 116 वर्ग किलोमीटर की महाझील कई खतरों को एक साथ आमंत्रित करने के लिए काफी है।
वहीं प्रस्तावित पंचेश्वर बांध ऊंचाई के लिहाज से विश्व का सबसे ऊंचा बांध होगा और 311 मीटर ऊंचा ये बांध दुनिया के उस हिस्से में प्रस्तावित है, जहां दुनिया की सबसे युवा पर्वत श्रृंखला है। जानकारों की मानें तो बांध बनने से हिमालय की तलहटी में 116 वर्ग किलोमीटर एरिया में पानी का भारी दबाव बनेगा। इस इलाके में पहले से ही भू-गर्भीय खिंचाव बना हुआ है, जिस कारण भारतीय प्लेटें यूरेशिया की ओर लगातार खिंच रही हैं। धरती के गर्भ में हो रही इस हलचल में मानवीय हस्तक्षेप जले में नमक का काम कर सकता है।
पर्यावरण मामलों के जानकार प्रकाश भंडारी ने बताया कि इतने भारी दवाब से कभी भी पहाड़ की धरती कांप सकती है। इसका खामियाज़ा पहाड़ों में रहने वालों के साथ ही मैदानी इलाकों को भी भुगतना पड़ेगा।