स्वामी सानंद की मौत को भी राजनीतिक लाभ से जोड़कर देख रहे नेता व संत

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(हरिद्वार) जीवित रहते हुए भले ही गंगा पुत्र स्वामी सानंद की किसी को सुध लेने की फुर्सत न मिली हो, किन्तु उनकी मौत के बाद उनके चाहने वालों की लम्बी फेहरिस्त हो गई है। आलम यह है कि हर कोई अब उन्हें श्रद्धांजलि देने की होड़ में शामिल है। वहीं, सानंद की मौत पर सरकार को कोसने से भी लोग पीछे नहीं हैं।

गौरतलब है कि गंगा रक्षा के लिए गंगा पुत्र स्वामी सानंद 111 दिनों तक अनशन पर रहे। इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री राजनीति चमकाने के लिए मातृसदन में आयोजित एक गोष्ठी में शिरकत करने अवश्य गए, किन्तु उसके बाद किसी ने भी स्वामी सानंद की सुध नहीं ली। उनकी आयु व गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए भी उनको अनशन समाप्त करने की किसी ने भी न तो सलाह दी और न हीं उनके अनशन के समर्थन में एक दिन भी भूखे रहकर उनका साथ दिया। अब गंगा पुत्र स्वामी सानंद हमारे बीच नहीं हैं। उनके जाने के बाद मानो उनके समर्थकों की एक बड़ी फौज पैदा हो गई है। कोई स्वमी सानंद की आत्मशांति के लिए कैंड़ल जला रहा है तो कोई उनकी तस्वीरों पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है। विपक्ष तो केन्द्र व राज्य सरकार को उनकी मौत का जिम्मेदार तक ठहरा रहा है।

इसमें कोई दो राय नहीं की गंगा रक्षा के लिए जो कार्य किया जाना था वह नहीं हो पाया। इसमें किसी एक सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। हां कांग्रेस से अधिक भाजपा इस कारण से अधिक दोषी कही जाएगी क्यों वह सत्ता में है। देश की आजादी के बाद से करीब साढ़े चार दशकों तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस ने ही गंगा रक्षा के लिए क्या किया। अब जो स्वामी सानंद के समर्थक एकाएक उत्पन्न हो रहे हैं उनके जीवित रहते वह कहां थे। क्यों उन्होंने मातृ सदन के स्वामी शिवानंद के खनन और गंगा रक्षा के अनशन को समर्थन नहीं दिया। क्यों सानंद के चाहने वाले उनकी मृत्यु से पूर्व बाहर निकलकर सामने नहीं आए। देखा जाए तो गंगा रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले स्वामी सानंद की मौत से किसी को कोई सरोकार नहीं है। वहीं जो संत समाज के कुछ लोग स्वामी सानंद की मौत पर मीडिया के माध्यम से विलाप करते नहीं थक रहे हैं वे इससे पूर्व हां थे। क्यों उन्होंने स्वामी सानंद का समर्थन नहीं किया। वहीं अखाड़ा परिषद के एक सदस्य ने तो स्वमी शिवानंद के अनशन को भी ढकोसला करार दिया था। आज वहीं संत समय के मिजाज को देखकर स्वमी सानंद की मौत की सीबीआई जांच की मां कर रहे हैं। कुल मिलाकर सभी दल अपने हिसाब से स्वामी सानंद की मौत को हथियार बनाकर राजनीतिक रोटियां सेकने का कार्य कर रहे हैं और यही राजनीति गंगा रक्षा के कार्य में सबसे बड़ी बाधा है।