लंबे अरसे के बाद भूले रास्तों पर पहुंचे सैलानी

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रोमांच के शौकीनों के लिए विश्व पर्यटन दिवस खास रहा। पहली बार 25 पर्यटकों ने उत्तरकाशी जिले (उत्तराखंड) में समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में से एक गर्तांगली की सैर की। जिस गर्तांगली से एक दौर में भारत-तिब्बत के बीच व्यापार चलता था, उसी गर्तांगली की कुछ सीढि़यों पर चढ़कर पर्यटकों ने रोमांच का आनंद उठाया।

बता दें कि भारत-चीन सीमा पर जाड़ गंगा घाटी में स्थित करीब 300 मीटर लंबा सीढ़ीनुमा यह रास्ता 17वीं सदी में पेशावर से आए पठानों ने एक विशालकाय चट्टान को काटकर बनाया था। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध से पहले व्यापारी इसी रास्ते से ऊन, चमड़े से बने वस्त्र व नमक लेकर तिब्बत से बाड़ाहाट (उत्तरकाशी का पुराना नाम) पहुंचते थे। युद्ध के बाद इस मार्ग पर व्यापारिक गतिविधियां बंद हो गईं और वर्ष 1975 से सेना ने भी इसका इस्तेमाल बंद कर दिया। तकरीबन 42 साल से इस मार्ग पर कोई आवाजाही नहीं हुई।

तब से पर्यटक इस सीढ़ीनुमा मार्ग का दीदार दूर से ही किया करते हैं, हर कोई पर्यटक इन सीढि़यों के करीब जाना चाहता था, लेकिन इसके लिए वाइल्ड लाइफ बोर्ड की अनुमति जरूरी थी। इस वर्ष पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के निर्देश के बाद प्रशासन ने अनुमति के लिए वाइल्ड लाइफ बोर्ड को पत्र भेजा। लेकिन, मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक डीबीएस खाती ने विश्व पर्यटन दिवस के लिए विशेष परिस्थिति में एक दिन के लिए ही अनुमति प्रदान की। साथ ही विधिवत अनुमति के लिए वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक होने के बाद संस्तुति देने की बात कही।

gartang gali

एक दिन की अनुमति मिलने पर बुधवार सुबह 25 पर्यटक उत्तरकाशी से 90 किलोमीटर गंगोत्री की ओर भैरवघाटी के पास लंका पहुंचे। लंका से खड़ी चट्टानों के बीच से ढाई किलोमीटर का पैदल ट्रैक गर्तांगली के लिए शुरू हुआ। गर्तांगली पहुंचने पर पर्यटकों ने अहसास किया कि कभी कैसे इस जोखिमभरे रास्ते से जीवन और दो देशों के बीच व्यापार चला करता था। अलीगढ़ से आए पर्यटक रीना भट्टाचार्य व सुब्रुतो भट्टाचार्य ने बताया कि, “नेलांग-जादूंग पहले भी गए हैं। नेलांग जाते समय ये सीढि़यां दूर से नजर आती थीं। तब यहां आने का बेहद मन होता था। आज इन सीढि़यों का करीब से दीदार कर वे बहुत खुश हैं।” संचालक तिलक सोनी ने बताया कि, “गर्तांगली एक ऐतिहासिक धरोहर है। प्रशासन और वन विभाग को इसकी टूटी हुई सीढि़यों को सही करना चाहिए। ताकि पर्यटक पूरी सीढि़यों से गुजर सकें।”

इन पर्यटकों ने की गर्तागली की सैर:उत्तरकाशी के उपेंद्र सजवाण, पौड़ी के पुष्कर रावत, दिल्ली के शैलेंद्र ठुकराल, पंकज हांडा, गाजियाबाद के मयंक आर्य, देहरादून के कबीर साहनी, डॉ. सांतुन, सपना ठुकराल, होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र मटूड़ा, दीपेंद्र पंवार, पीयूष बनूनी आदि थे।