ऋषीकेश में गंगा के तट पर स्थित मणि कूट पर्वत प्राचीन समय से ही ऋषि मुनियों की तपोभूमि के नाम से जाना जाता है।यहाँ पर नीलकंठ महादेव और अन्य कई सिद्ध पीठ है।इस छेत्र को पर्यटन के मानचित्र पर लाने के लिए पिछले 13 सालों से मणि कूट पर्वत की परिकर्मा का आयोजन किया जाता रहा है,जिस में देशी-विदेशी लोग शिरकत करते है।कहा जाता है कि मणि कूट पर्वत पर त्रिदेव निवास करते है जिसकी परिक्रमा करने से पापो का शमन होता है।ऋषियों की तपस्थली मणि कूट पर्वत अपने में असीम खूबसूरती और सिद्ध पीठ को समेटे हुए है,लेकिन इसका अधिकांश भाग राजा जी नेशनल पार्क के अंतर्गत आने के कारण ये पूरा इलाका प्रकृर्ति और पर्यटन की असीम संभावनाओ के बावजूद भी अछूता है। अब जाकर यहाँ के ग्रामीण लोगो ने अपनी पौराणिक यात्रा को फिर से शुरु किया है जिससे इस इलाके को पर्यटन से जोड़ा जा सके। कहते है पुराणों में बताया गया है की समुद्रमंथन में निकले विष को अपने कंठ में धारण करके भगवन शिव ने मणिकूट पर्वत में ही तपस्या की थी, इसी स्थान पर विष की तपन से भगवन शिव को शांति मिली थी और वो तपस्या में लीन हो गए थे। मणि कूट पर्वेर्ट परिकर्मा लगभग ६० क़ि.मी. की एक खुबसुरत ट्रेकिग रूट है जंहा प्रकर्ति ने अपनी सुन्दरता को बिखेरा हुआ है नदी ,झरने और उची नीची पर्वत मालाये यहाँ पर आने वाले यात्रियों को एक सुखद एहसास कराते है। अगर सरकार इस ट्रेकिंग रूट पर धायन दे तो आने वाले समय में ये जल्द ही पर्यटन के मानचित्र पर अपनी जगह बना लेगा,जिस से सरकार को राजस्व और गर्मिनो को स्वरोजगार मिलेगा।पिछले 12 सालों से इस यात्रा का हिस्सा बन रही एमी बताती है की ये यात्रा काफी अच्छी है और इस यात्रा को करने से एक आध्यात्मिक एनर्जी प्रवाह शरीर में होने लगता है। सिद्ध पीठो और १२ द्वारो से घिरा मणि कूट पर्वत अपने में असीम सुन्दरता समेटे हुए,जरुरत है तो इस यात्रा के प्रचार प्रसार की जिस से आने वाले समय पर्यटन के साथ-साथ ग्रामीणों को भी रोजगार एवं पलायन से मुक्ति मिल सके और इस छेत्र की आध्यात्मिक और प्राकर्तिक नज़रों का पर्यटक भी लुफ्त उठा सके।
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