हर्बल रंगों से खेलें होली, रासायनिक रंग नुकसानदेह

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देहरादून। होली का त्योहार रंगों के बिना अधूरा है, लेकिन आजकल बाजार में कई केमिकल रंग मौजूद हैं जिनसे होली खेलना महंगा पड़ सकता है। हर्बल रंगों से होली खेलें। इससे स्वास्थ्य को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। साथ ही आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ेगी। जबकि रासायनिक रंग नुकसानदेह है।

होली का त्योहार आते ही पलाश फूल जेहन में उभर आते हैं। कहते हैं भगवान श्रीकृष्ण भी टेसू (पलाश) के फूलों से होली खेलते थे। पलाश के फूलों के रंग को होली का पारम्परिक रंग माना जाता है। साथ ही इससे त्वचा को कोई नुकसान नहीं पहुंचता, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। रासायनिक रंगों के दौर में भी नारंगी या लाल पलाश के फूल से बने रंग की काफी मांग है। इसकी खास वजह भी है लोगों का प्रकृति की ओर फिर से लौटना। आज के समय में लोग स्वास्थ्य और पर्यावरण को लेकर काफी सजग हो गये हैं। लोगों की जागरूकता बढ़ी है। यही कारण है कि बाजारों में उपलब्ध रासायनिक रंगों से महंगे होने के बावजूद लोग पलाश के फूल के रंगों का उपयोग होली खेलने में करते हैं। हालांकि होली खेलने के लिए पलाश के फूलों से बने रंग का इस्तेमाल लोग सदियों से करते आ रहे हैं। वर्तमान में रासायनिक रंगों की सुलभता ने भले ही लोगों को प्रकृति से दूर कर दिया हो, लेकिन रासायनिक रंगों से होने वाले नुकसान और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के कारण लोग दोबारा प्रकृति की ओर रुख करने लगे हैं।

ग्रामीण इलाकों में कुछ साल पहले तक पलाश के फूल से बने रंगों से होली खेली जाती थी, क्योंकि इस रंग से त्वचा को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। पलाश के फूल का जिक्र साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में भी किया है। होली के दौरान गाए जाने वाले गीतों में भी पलाश या टेसू के फूल के जिक्र मिलते हैं। कवियों ने अपनी कविताओं में भी पलाश के फूलों का गुणगान किया है। साथ ही इसके असीमित औषधीय गुण शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। वर्तमान समय में भी झारखंड पटमदा, ईचागढ़ और बंगाल के कुछ भागों में पलाश के फूल से रंग तैयार किये जाते हैं। पलाश के फूल से बने प्राकृतिक रंग से लोग होली खेलते हैं। प्राचीन काल में इसके फूलों का इस्तेमाल कपड़ों को रंगने के लिए किया जाता था। पलाश के फूल से बने रंग से होली खेलने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता है। पलाश के फूल को पीसकर चिकन पॉक्स के रोगियों को भी लगाया जाता है।

ऐसे बनते हैं पलाश के फूल से रंग:

पलाश के फूल से कई विधियों से रंग बनाये जाते हैं। फूल से रंग बनाने के लिए पहले फूल को छाया में सुखाया जाता है। सूखे फूलों को मात्रा के हिसाब से पानी में डालकर दो से तीन दिनों तक छोड़ दिया जाता है। इसके बाद पानी का रंग लाल या नारंगी हो जाता है और इसी का इस्तेमाल सुरक्षित होली खेलने के लिए किया जा सकता है। दूसरे तरीके से पलाश के फूल को पेड़ से तोड़कर मिट्टी की हांडी में दो-तीन दिनों तक रखा जाता है। इसके बाद इससे रंग निकल आते हैं, जो काफी गहरा होता है। वहीं कुछ लोग फूल को पानी में उबाल कर रंग निकालते हैं। रंग में चुना मिला देने से पलाश के फूल से बना रंग कपड़ों से नहीं छूटता है।