(ऋषिकेश) ड्रग माफिया के लिए देवभूमि महफूज ठिकाना बनी हुई है। पिछले कुछ ही सालों मे धर्मनगरी के विभिन्न क्षेत्रों में पुलिस ने नशीली दुनिया का काराबोर करने वाले कई लोगों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया है। लेकिन अब भी बड़े माफिया अभी भी पुलिस के चंगुल से दूर बने हुए हैं।
राजधानी देहरादून में मादक प्रदार्थों के जरिए युवा पीढ़ी को लगातार ड्रग माफियाओं द्वारा अपना शिकार बनाया जाता रहा है। पुलिस के लाख दावों के बावजूद ड्रग रैकेट्स का नेटवर्क तोड़ने में खाकी कामयाब नही हो पा रही है।इ स शांत प्रदेश मे नशा नासूर बनता जा रहा है। नशे का बढ़ता जाल प्रदेश के लिए चिंताजनक तो है, यह युवा पीढ़ी को भी खोखला कर रहा है। हालांकि उत्तराखंड पुलिस लगातार नशे के सोदागरो के नेटवर्क को तोड़ने के लिए जाँल बिछाती रही है लेकिन यह जांच का विषय है कि यह नेटवर्क टूट क्यूँ नही रहा। जनपद देहरादून की तर्ज पर अन्य जिलों में भी अभियान चलाने की जरूरत है। आए दिन प्रदेश के किसी न किसी हिस्से से चरस, स्मैक,सुल्फा आदि नशीले पदार्थो का मिलना दर्शाता है कि लाख कोशिशों के बावजूद अब तक हालात सामान्य नहीं हुए हैं। करियर बनाने की उम्र में नशीले पदार्थो की ओर आकर्षित होकर कई युवा राह से भटक रहे हैं। प्रदेश के राज्यपाल भी नशे पर चिंता जता चुके हैं। जानकार भी मानते हैं कि प्रदेश में खतरनाक स्थिति पर पहुंच चुकी नशाखोरी पर यदि लगाम नहीं लगाई गई तो हम मौजूदा एक पूरी पीढ़ी खो देंगे।
सीओ वीरेंद्र सिंह रावत का कहना है की पुलिस द्वारा लगातार इस नेटवर्क को तोड़ने के लिए अपने सूत्रों की सूचना पर छापेमारी भी करती है और धंधे में लगे लोगों को पकड़ कर जेल भी भेज रही है लेकिन इनके मजबूत नेटवर्क के चलते नौजवान इसकी चपेट में आ रहे हैं उन्हें तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। मादक पदार्थों के मकड़जाल में फंसने की शुरुआत जानकार छात्र जीवन में लगाए गए सिगरेट के कश को मानते हैं। भटकाव के दौर से गुजरने वाले युवा धीरे धीरे हैवी डोज के चक्कर में मादक प्रदार्थो की लत के आदि हो जाते हैं। इसके चंगुल मे फंसकर ऋषिकेश मे अनेकों युवा अकाल मोत का ग्रास बन चुके हैं। पुलिस प्रशासन के साथ साथ यहां के सामाजिक संस्थाओं द्वारा भी अनेको मर्तबा नशा मुक्ति को लेकर अभियान चलाये जाते रहे हैं लेकिन कड़वी सच्चाई यह भी है कि धर्मनगरी ऋषिकेश में अब तक यह अभियान परवान नहीं चढ़ पाएं हैं।