ऐसा उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार होगा जब उत्तराखंड निर्वाचन आयोग और राज्य सरकार मिलकर रिर्जव जंगलों में वन गुर्जरों के तराई क्षेत्र पोलिंग बूथ लगाऐंगें। ये पोलिंग बूथ जंगलों में डाक बंगलों ,फारेस्ट आउटपोस्ट और अस्थायी घरों में लगेंगे। इस काम के लिये फाॅरेस्ट रेंजरों को पोलिंग अधिकारियों की मदद के लिये लगाया गया है।अफसरों को लगता है ऐसा करने से जंगलों में रहने वाले मूल निवासी वन गुर्जर,जो पिछले 50 सालों से भी लंबे समय से जंगल में रह रहें हैं और जिनकी जनसंख्या लगभग 80,000 है उनको एक मौका मिलेगा कि वह पहली बार एकजुट होकर अपना वोट डाल पाऐंगे।
उत्तराखंड का 70 प्रतिशत से भी ज्यादा क्षेत्र जंगलों में आता है और आधा से भी ज्यादा क्षेत्र फारेस्ट डिर्पाटमेंट के अंर्तगत आता है।नीतिश मनी त्रिपाठी,क्षेत्र के सिनीयर फारेस्ट आफिसर बताते हैं कि यहां पर वन गुर्जर के लगभग 194 परिवार रिर्जव फारेस्ट के तराई(पूरब) में रहते हैं।
16 साल के इंम्तियाज अली, किशनपुर रेंज में रहते हैं और वन गुर्जर के 12 लोगों के परिवार के मालिक बताते हैं कि हमें यहा रहते हुए लगभग 50 साल हो गए हैं,लेकिन आज तक भी हमें उन जमींनों का मालिकाना हक नहीं दिया गया है जिनपर हम रहते हैं।पहले उन्हें हमेशा करीब 20 किमी सफर करने के बाद वोट करने का मौका मिलता था लेकिन अब ये सब बदलने वाला है।
वन गुर्जरों का युवा वर्ग यह मानता है कि पोलिंग बूथ पास में होना होना अच्छी बात है लेकिन उनकी ज़रूरत स्कूल है जो कि यहां से इतना दूर है कि बच्चे स्कूल तक नहीं पहुंच पाते हैं, ये कहना है राईखाल सेटलमेंट में 25 साल के शमशाद अली का, जो कि वन गुर्जर की तीसरी पीढ़ी के नौजवान है।
बहरहाल कई सालों में सरकार की तरफ से ये कदम वन गुर्जरों को मुख्य धारा में शामिल करने की एक अच्छी पहल है।