श्यामपुर न्याय पंचायत के ग्राम सभा खदरी खड़क माफ स्थित करोड़ों रुपये की लागत से बनी राजकीय पॉलिटेक्निक संस्थान इन दिनों आवारा पशुओं और नशेड़ियों का अड्डा बन कर रह गया है। स्थानीय लोगों का कहना है संस्थान में स्टाफ और अन्य सुविधाओं की कमी के चलते शैक्षणिक कार्य प्रभावित हो रहा है, यह शासन प्रशासन की घोर लापरवाही है।
वर्ष 2005-06 में लगभग 11 करोड़ की लागत से निर्मित इस संस्थान में 14 आवासीय भवन, एक डिस्पेंसरी भवन तथा बालकों और बालिकाओं के दो छात्रावास उपलब्ध हैं। वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के समय गंगा जल स्तर में वृद्धि से परिसर में मलबा भर गया था, तब से आवासीय परिसर सहित विद्यार्थियों के उपचार के लिए बनाई गई डिस्पेन्सरी उपयोग में नहीं है।
ग्राम प्रधान खदरी सरोप सिंह पुंडीर का कहना है कि, “लगभग 52 बीघा भूमि पर बने इस संस्थान का सरकारी उपेक्षा के कारण पूरा लाभ नहीं लिया जा रहा है। परिसर की चारदीवारी क्षतिग्रस्त होने के कारण आवासीय परिसर नशेड़ियों का अड्डा बन रहा है। सुरक्षा के दृष्टिगत थाना कोतवाली ऋषिकेश को लिखित सूचना दी गई है। इस सबंध में कोतवाली प्रभारी रितेश शाह का कहना है कि उन्हें इस संबंध में जब सूचना मिलती है, वहां पुलिसकर्मियों को भेजा जाता है और कई बार असामाजिक तत्वों को पकड़ा भी गया है।”
संस्थान के पर्यावरण संरक्षक और समाजसेवी विनोद जुगलान का कथन है कि, “भव्य परिसर न केवल सरकारी उपेक्षा का शिकार हुआ बल्कि जनप्रतिनिधियों ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। संस्थान में तीन छात्रावास उपलब्ध होने के बाद भी विद्यार्थी किराए पर रहने को मजबूर हैं। डिस्पेन्सरी भवन है लेकिन स्टाफ नहीं है। सुरक्षा दीवार ढह जाने के कारण संस्थान परिसर आवारा पशुओं की शरणस्थली बन गया है, इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।”
पॉलिटेक्निक संस्थान के प्रधानाचार्य सुनील कुमार का कहना है कि, “संस्थान एकान्त में बने होने के कारण शिक्षा का सुंदर और अनुकूल वातावरण है। आल इंडिया टेक्निकल एजुकेशनल कॉउन्सिल से मान्यता प्राप्त होने के कारण एक भी सीट खाली नहीं रहती है। संस्थान में पढ़ने वाले ज्यादातर छात्र निर्धन परिवारों से आते हैं। यदि संस्थान की सुरक्षा दीवार सहित इसके रखरखाव के प्रबन्ध किये जायें तो यह संस्थान राज्य का आदर्श संस्थान बन सकता है। विद्यालय की सुरक्षा को लेकर कई बार पत्राचार किया गया लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला है। सुरक्षा कर्मियों के अभाव में हरित पोषण के लिए किए गए पौधरोपण को भी पशु चर रहे हैं।”