रुद्रप्रयाग, एक इंजीनियर बेटी ने अपना फार्मास्यूटिकल कंपनी की नौकरी छोड़,एक साल पहले गढ़वाल के विभिन्न जिलों में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने मे जुट गयी। 26 साल की प्रियंका पिछले एक साल में मशरूम व सब्जी उत्पादन के 600 से अधिक प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर चुकी हैं, प्रशिक्षण प्राप्त कर 300 से अधिक महिलाएं वर्तमान में प्रतिमाह दस से 12 हजार रुपये कमा रही हैं।
प्रियंका ने शुरुआती शिक्षा रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ स्थित विद्या मंदिर से की है उसके बाद दसवीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह देहरादून आ गईं। यहां उन्होंने ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय से बीटेक-बायोटेक की डिग्री लेने के बाद मल्टीनेशनल कंपनी में काम किया।
अपने राज्य और गांव के प्यार ने प्रियंका को शहर की भागदौड़ की जिंदगी से अलग हटकर अपने गांव वापस खींच लिया,वो बताती हैं कि, ““मुझे गांव और अपने क्षेत्र में काम करना है, इसलिए मैनें 2017 में नौकरी को अलविदा कहा और गांव लौट आईं।” यहां उन्होंने उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग से मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लेकर ऊखीमठ में मशरूम उत्पादन का काम शुरू किया, “उन्होंने कहा कि शुरुआत में परेशानी हुई थी क्योंकि लोग जागरुक नहीं थे,, अौर सब कुछ सेट-अप करना मुश्किल था, इसलिए पहले छोटे स्तर पर काम शुरु किया, फिर लोग इसमें रुचि लेने लगे अौर लोग जुड़ते गयें.” प्रियंका ने घर पर ही मशरूम उत्पादन की एक छोटीसी यूनिट तैयार की। शुरुआत में इससे एक महीने के दौरान 90 किलो मशरूम पैदा हुआ, जो ऊखीमठ समेत मनसूना, गुप्तकाशी, कुंड आदि गांवों में हाथोंहाथ बिक गया।
केवल मशरुम ही क्यों, प्रियंका बताती हैं कि,महिलाएं अपना घर का काम घर बैठे ही इसका उत्पादन कर सकती हैं।इसमें ना तो समय लगता है और ना ही बहुत ज्यदा पैसों की जरुरत होती है,और इस वजह से हर आर्थिक परिस्थिती वाला इसे उगा सकता है और हमें इसका रेस्पॉंस बेहतर मिला।
आज प्रियंका और उनकी 15-20 लोगों की टीम रुद्रप्रयाग, चमोली व टिहरी जिलों के विभिन्न स्थानों पर सैकड़ों शिविर आयोजित कर महिलाओं को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दे चुकी हैं। उनका प्रयास है कि, “उत्तराखंड मशरुम के उत्पादन की जो दिक्कत आज भी पहाड़ों में है, उसके लिए हम कोशिश कर रहे हैं कि श्रीनगर या रुद्रप्रयाग में स्पॉन लैब खुल जाए और साथ ही औषधिय पेड़ं पौधे भी उगाएं जाएं।”
प्रियंका के इस जज्बे को न्यूजपोस्ट टीम का सलाम!