देहरादून, नैनीताल के भीमताल, सातताल और देवीधुरा इलाकों के जंगलों में करीब दस दिनों से धधक रही आग सोमवार को हुई झमाझम बारिश से बुझ गई। कुदरती तरीके से आग बुझने से वन विभाग और नागरिकों ने राहत की सांस ली है। साथ ही जंगली जानवरों के सिर पर आया संकट टल गया। आग में करोड़ों रुपये की वन सम्पदा जलकर नष्ट हो गई है।
नैनीताल में सोमवार की दोपहर में झमाझम बारिश हुई। इससे मौसम सुहावना हो गया तो वहीं जंगलों में लगी आग भी बुझ गई। मौसम के बदले मिजाज से कई जिलों के तापमान में गिरावट दर्ज की गई है। देहरादून में भी पिछले 10-11 दिनों से आग लगने से 32 से अधिक घटनाओं में काफी नुकसान हुआ है। प्रदेशभर में एक सप्ताह पहले जहां 216 घटनाएं और 272 हेक्टेयर जंगल के जलने से 28 लाख की क्षति हुई थी, वहीं यह क्षति 45 से 50 लाख के आसपास पहुंच चुकी है। पिछले 24 घंटों में 44 से अधिक घटनाएं घट चुकी है, इनमें कुमाऊं ज्यादा प्रभावित है।
वर्ष 2019 की बात करें तो अल्मोड़ा जिले में 189.25 हेक्टेयर का जंगल आग में स्वाहा हो चुका है। आग लगने की 76 घटनाएं हुई हैं। नैनीताल में 168.28 हेक्टेयर जंगल जल चुके हैं। यहां अब तक सबसे ज्यादा 170 जंगल में आग लगने की घटनाएं हुई हैं। उत्तराखंड में इस साल 12 मई तक 595 आग लगने के हादसे हुए हैं। इनमें से टिहरी गढ़वाल में 70, चंपावत में 60, पौड़ी गढ़वाल (68), देहरादून (34), पिथौरागढ़ (27), रुद्रप्रयाग (26), बागेश्वर (20), चमोली (15), हरिद्वार (13), उत्तरकाशी (12) और उधम सिंह नगर (4) में आग लगने की घटनाएं हुई है।
क्या कहते हैं पर्यावरणविद्…
पर्यावरणविद् हरवीर सिंह कुशवाहा ने बताया कि, “कि आग की इन घटनाओं का कारण मानवीय भूल तथा चूक ज्यादा है। इन लापरवाही का खामियाजा वन सम्पदा का नुकसान और जंगली जानवरों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है।” देहरादून स्थित सीईडीएआर के कार्यकारी निदेशक विशाल सिंह तथा समाजसेवी डीएस रावत का कहना है कि, “गांव वाले और वन्य अधिकारी घास और चारे की पैदावार बढ़ाने के लिए कृषि अवशेष और चीड़ के कांटों में नियंत्रित तरीके से आग लगाते हैं लेकिन असली समस्या तब पैदा होती है, जब यह आग हाथ से बाहर निकल जाती है।” स्थानीय लोगों का आरोप है कि कुछ असामाजिक तत्व भी जंगलों में आग लगा रहे हैं।
फायर का काम देख रहे वीरेन्द्र सिंह नेगी ने बताया कि, “अकेले गढ़वाल में 260.55 हेक्टेयर जंगल अब तक जल चुका है, जबकि क्षति आंकड़ा तीन लाख रुपये से पार पहुंच चुका है, यही स्थिति कुमाऊं की भी है। यहां जंगलों की आग बुझाने में वन विभाग फिलहाल जुटा हुआ है।”