हाथियों का कब्रगाह बना राजाजी पार्क

    0
    735
    हाथी
    FILE

    उत्तराखंड का राजाजी पार्क हाथियों की कब्रगाह बनता जा रहा है। लगातार हाथियों का मरना इस बात का संकेत है कि कहीं न कहीं वन विभाग हाथियों के प्रति सचेत नहीं है।

    यूं तो अपने ऋतु काल में टस्कर और मादा हाथियों के बीच होने वाली लड़ाई में हाथी अक्सर अपनी जान गंवाते हैं लेकिन शिकारियों की भी कुदृष्टि गजराजों पर बनी रहती है। अभी हाल ही में राजाजी टाइगर रिजर्व के बेरीवाडा रेंज में दो साल की हथिनी की हार्ट अटैक से मौत हो गई। चिकित्सकों ने हथिनी का पोस्टमार्टम किया। राजाजी में इस वर्ष अब तक करीब 10 से अधिक हाथियों की मौत हो चुकी है। राजाजी टाइगर रिजर्व के बेरीवाडा रेंज में दो साल की हथिनी बेरीवाडा रेंज के कंपार्ट दोकृसी के बाम बीट में मृत अवस्था में मिली। हथिनी की मौत की सूचना पर राजाजी टाइगर प्रशासन में हडकंप मच गया।
    रेंजर विजय सैनी सहित अन्य मौके पर पहुंचे। हालांकि हथिनी का शव कुछ दिन पुराना बताया जा रहा है और उसके बावजूद हथिनी का चिकित्सकों ने पोस्टमार्टम किया। पोस्टमार्टम के दौरान यह पाया गया कि हथिनी की हार्ट बीट क गई और शरीर में चर्बी बढ़ने लगी जिससे उसकी मौत हो गई। भले ही यह मौत स्वाभाविक है लेकिन लगातार हाथियों का मिटना कहीं न कहीं किसी अव्यवस्था की ओर संकेत करती है।
    राजाजी पार्क के निदेशक सनातन सोनकर ने बताया कि पोस्टमार्टम में हथिनी की मौत की वजह हार्ट अटैक आई है। उत्तराखंड राज्य गठन के बाद अब तक 17 सालों में लगभग 100 हाथियों ने अपने जान गंवाई है। अकेले राजाजी की बात करें तो वहां 2003 के गणना अनुसार 469 के करीब गजराज थे। अब यह संख्या 302 रह गई जो इस बात का पुख्ता प्रमाण देती है कि हम हाथियों की मौत के कारणों पर संवेदनशील नहीं हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो लगभग 100 हाथियों की कमी बड़ी कमी मानी जा सकती है। वन विभाग के आंकड़े भी मानते हैं कि राज्य गठन के बाद से अब तक राजाजी में 93 हाथियों की मौत हुई है। पिछले दिनों गजराज के कुनबे की गणना की गई थी जिसकी संख्या अभी नहीं आई हुई है, जिससे हाथियों की संख्या में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी होगी। हाथियों के खात्मे का आंकड़ा काफी रहस्यमय इस आंकड़े के अनुसार प्रतिवर्ष लगभग पांच गजराज अपनी जान गंवाते हैं। विभाग इनकी मौत स्वाभाविक तथा आपसी संघर्ष मान रहा है। विभाग का मानना है कि हाथियों का शिकार पिछले कुछ वर्षों से नहीं हुआ है लेकिन हाथी दांत के विक्रेता और खरीदार जिस ढंग से अपने कारोबार का अंजाम दे रहे हैं वह भी इस बात का चुंगली करता है कि हाथियों की हत्या हो रही है। राजाजी टाइगर रिजर्व में हाथियों की मौत का ग्राफ देखें तो हर साल औसतन पांच गजराजों की मौत हो रही है। हालांकि राजाजी पार्क प्रशासन गजराजों की स्वभाविक मौत, संघर्ष में मौत और बीमारी को मुख्य कारण मान रहा है। शिकार की घटनाओं में हाथियों के शिकार विगत कुछ वर्षों में रिजर्व प्रशासन शून्य मान रहा है।
    विभाग मानता है कि 2013 में 16 हाथियों की मौत, 2014 में चार हाथियों की मौत, 2015 में एक हाथी, 2016 में नौ हाथियों की और 2017 में अब तक 10 हाथियों की मौत हो चुकी है।
    राजाजी पार्क के निदेशक सनातन सोनकर मानते हैं कि 2016-17 की हाथी गणना में राजाजी पार्क में 366 हाथी पाए गए हैं, जो पूरे देश की बढ़ोत्तरी में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी मानी जा रही है। निदेशक राजाजी पार्क के अनुसार राज्य बनने के बाद केवल 30 हाथियों की मृत्यु हुई है। 80 प्रतिशत हाथियों की असामायिक मौत रेलवे के कारण हुई है। सोनकर के अनुसार इसी साल में दो हाथी रेल से कटे हैं शेष हाथियों की मौत स्वाभाविक तथा सामान्य मौतें हैं।