उत्तराखंडी संगीत को नया अंदाज़ दे रहा है ये संगीतकार

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90 के दशक में “माय री” गाने से देश में धूम मचाने वाला यूफोरिया बैंड और डाॅ पलाश सेन शायद ही किसी परिचय के मोहताज हैं। इस गाने ने ना केवल देश के म्यूजिक चार्ट टाॅप किये बल्कि इसने लोगों के सामने यूफोरिया बैंड को एक अलग पहचान भी दिलाई। इस सफलता के बाद डाॅ सेन अपने बैंड के साथ हिट पर हिट गाने और कान्सर्ट संगीत प्रेमियों को दे रहे हैं।

लेकिन शायद हम में से बहुत कम लोग यूफोरिया के उत्तराखंड कनेक्शन के बारे में जानते हैं। बैंड के लीड परक्यूशनिस्ट हैं राकेश भारद्वाज। राकेश पौड़ी जिले से नाता रखते हैं। राकेश खुद एक टैलेंटेड म्यूजिशियन तो है ही साथ ही उनके पिता चंदर सिंह राही आल इंडिया रेडियो पर अपना गढ़वाली गीत गाने वाले पहले गायक थे। 

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राकेश ने फ्यूज़न म्यूजिक को एक नए आयाम तक पहुंचाया है। साल 2014 में राकेश ने पहाड़ी संगीत में जान फूंकने के लिए ‘पहाड़ी सोल’ नाम से एक म्यूजिक कंपनी की शुरुआत की। इस कंपनी के जरिए राकेश पहाड़ के पारंपरिक संगीत और उसके रस को लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहें हैं। परंपरा को भूलने वाले युवा वर्ग के लिए राकेश एक मिसाल बनकर सामने आए हैं जो पहाड़ की परंपरा को लोगों के बीच अपने अंदाज में पेश कर रहें है। राकेश के इस अंदाज को लोगों ने सराहा भी है। राकेश बताते हैं कि “मैं हमेशा से अपने पहाड़ी राज्य के लिए कुछ करना चाहता था, खासकर के संगीत के क्षेत्र में जिससे हमारे राज्य को एक अलग पहचान मिल सके।”

“गाडो गुलोबंद” राकेश का नया गाना है जो अभी यूट्यूब पर हाल ही में लांच हुआ है। अगर पहाड़ी संगीत और राकेश के सफर की बात करें तो पहाड़ के ऐंथम के रूप में मशहूर ‘बेड़ पाको, बारह मासा’ से राकेश ने अपनी शुरुआत की और इसको नए रुप में सबके सामने रखा। इस गाने को गढ़वाल के साथ पूरे उत्तराखंड का एंथम माना जाता है और राकेश के पहले गाने ने ना केवल उत्तराखंड में बल्कि पूरी दुनिया में बसे गढ़वाली समाज में धमाल मचा दिया। इस गाने के हिट होने के बाद तो जैसे राकेश के अरमानों को नई उड़ान मिल गई और एक के बाद एक उन्होंने 3 गानों का म्यूजिक विडियो लांच किया,  जिसमें से, ‘सात समंदर पार’ उनके पिता द्वारा 80 के दशक में गाया गया था।

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राकेश कहते हैं, “मेरे लिए यह काम पैसे का माध्यम नही है बल्कि म्यूजिक मेरा जूनून है। संगीत एक ऐसा माध्यम है जो हवाओं के साथ बहता हुआ दुनिया के हर कोने और हर बंधन तोड़कर लोगों तक पहुंचता है और सभी दूरियों को कम कर लोगों के दिलों में बसता है। मैं एक बार फिर से परंपरागत पहाड़ी गाने सुनने की वजह देना चाहता हूं, एक बार फिर से लोगों के ज़हन में वो संगीत पिरोना चाहता हूं जो समय के साथ फीका पङ गया है।”  राकेश ने 13 साल की उम्र संगीत के क्षेत्र में प्रोफेशनल शिक्षा ली। गंधर्व महाविधालय से राकेश ने उस्ताद फय़्याज़ खान गुरु से तबला वादन का प्रशिक्षण लिया। आज उनका मिशन हैं पहाड़ के पारंपरिक संगीत को उस मुकाम तक पहुंचाया जाये ताकि युवा वर्ग के फोन में पंजाबी गाने की ज़गह पहाड़ी गाने चलें।