बेगूसराय, इस खूबसूरत जिंदगी के कैनवास पर जहां एक ओर मिट्टी की खुशबू से सरोबार खुशी के रंग बिखरे पड़े हैं, वहीं दूसरी तरफ इन्हीं मिट्टियों के समायोजन से तैयार कलाकृतियों से एक काली छाया भी परिलक्षित हो रही है। जब जज्बा हो कुछ कर गुजरने की तो मंजिल दूर होते हुए भी पास नजर आने लगती है।
ऐसी ही एक कहानी है बेगूसराय जिले के बखरी से सटे महादलित और अति पिछड़ा मुहल्ला सिमाना के रहने वाले दिव्यांग रामलगन की। जो कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपने शौक को जिन्दा रख उसे एक नया आयाम देने में जुटे हुए हैं। अभी तक गुमनामी के अंधेरे में कैद रामलगन की जिंदगी में अब उजाला आने वाला है। सबसे पहले ‘हिन्दुस्थान समाचार’ ने नौ मई को ‘बोल नहीं सकता लेकिन जीवंत दिखती है कलाकृति’ के द्वारा रामलगन की विलक्षण प्रतिभा को सामने लाया। इसके बाद देशभर में हेरिटेज तथा अनोखी बातों पर फोकस करने वाले दो घुमक्कड़ की नजर इस पर गई।
उसके कला की विलक्षण प्रतिभा को देख विश्वमाया चैरिटेबल ट्रस्ट के साथ मिलकर दो घुमक्कड़ के नाम से गूगल पर चर्चित मनीष गार्गी और आत्मानंद कश्यप डॉक्यूमेंटरी फिल्म बना रहे हैं। इसकी शूटिंग रविवार से ही चल रही है तथा जल्दी ही दुनियाभर में लोग इसे देखेंगे, सुनेंगे और समझेंगे।
मूक-बधिर दिव्यांग रामलगन को मिट्टी और बेकार पड़े समानों की कलाकृति निर्माण का अद्भुत हुनर ऊपर वाले ने दिया है। रामभरोस सदा का पुत्र रामलगन ना तो बोल सकता है और ना ही सुन सकता है। मानसिक और बौद्धिक दिव्यांगता के बाद भी मिट्टी से बनाई गई इसकी कलाकृतियों को देखकर हर कोई दंग रह जाता है।
चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित उजान बाबा स्थान की प्राकृतिक छटा में अपनी रचनात्मक कला को मशगुल इन रहकर कला में और निखार लाते रहता है। बगैर किसी प्रशिक्षण के रामलगन मिट्टी और बेकार फेंकी गई चीजों से जेसीबी, ट्रैक्टर, ट्रक, ट्रेन, बाइक, हल, जनरेटर समेत दर्जनों समान काफी कुशलता से बनाते हैं। गीली मिट्टी से बनाकर तैयार की गई मूर्तियां इतनी जीवंत दिखती हैं कि मानो अब वह बोल पड़ेंगी।
डॉ. रमण झा ने बताया कि गांव में पगला के नाम से चर्चित रामलगन की विलक्षण प्रतिभा को डॉक्युमेंटरी फिल्म के माध्यम से दुनिया के सामने लाने का एक छोटा प्रयास किया जा रहा है। जिससे कि दुनिया शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आर्थिक, सामुदायिक और पारिवारिक पिछड़ेपन के बावजूद रामलगन के कलाकारी और कारीगरी का एहसास कर सके।