कूड़ा उठाने वाले के हाथों में थमा दी किताब और संवार दी किस्मत

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गोपेश्वर। फिल्म का यह गाना अपने लिए जीये तो क्या जीये….तु जी ऐ दिल जमाने के लिए…। इस फिल्मी गाने को शायद कुछ लोग सिर्फ मनोरंजन के लिए सुनते हो मगर श्रीनगर गढ़वाल के निकट प्राथमिक विद्यालय गहड की अध्यापिका संगीता फरासी ने इस गाने को साकार कर दिखाया है। उन्होंने शहर के कूड़ा बीनने वाले बच्चों के हाथों में किताबे थमा कर उन्हें आखर ज्ञान देने का जो बीड़ा उठाया है उस जज्बे को हर को सलाम कर रहा है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां लोगों के पास अपने खुद के बच्चों के लिए समय नहीं है वहीं हमारे बीच संगीता फरासी जैसी शिक्षिकाएं भी हैं जिन्होंने सड़क पर भीख मांगने वाले बच्चों की किस्मत की रेखा ही बदल दी।

भीख की जगह जलाई शिक्षा की मशाल
श्रीनगर अपर बाजार निवासी शिक्षिका संगीता फरासी का कहना है कि उनको शहर में भीख मांगते बच्चों को देखना बेहद तकलीफ देय होता था। जब भी वे ऐसे बच्चों को भीख मांगते हुए देखती तो मन ही मन बेहद दुखी होती। कई मर्तबा उन्होंने इन बच्चों से कहा कि वो भीख मांगना छोड़ दें। लेकिन वे हर बार फिर आ जाते। आखिरकार संगीता नें इन बच्चों से भीख मांगने की आदत छुड़ाकर इन्हें मुख्यधारा में शामिल करने की ठानी और निकल पड़ी इनके डेरे की ओर। जहां इन बच्चों के माता-पिता से इन्हें भीख की जगह स्कूल भेजने की बात की। लेकिन वे नहीं माने। जिसके बाद संगीता नें निःशुल्क शिक्षा और काॅपी किताब, ड्रेस का वायदा किया तो घरवालो नें हामी भर दी। संगीता नें कुल 15 बच्चों को भीख की जगह स्कूल में दाखिला करवाया और इनके ट्यूशन की व्यवस्था कराई। जिसका खर्च वो खुद वहन करती है।

मेले में बच्चों ने की क्राफ्ट वर्क से आमदनी
इन बच्चों को क्राफ्ट शिक्षक के सहयोग से क्राफ्ट की ट्रेनिंग देकर कुशल बनाया। जिसके बाद श्रीनगर में आयोजित बैकुंठ चतुर्दर्शी मेले में हैंडमेड क्राफ्ट का स्टॉल लगवाया। जिसमें पहले ही दिन इन बच्चों ने 1800 रुपये का सामान बेचा। पूरे मेले में बच्चों का ये स्टाॅल सबके आकर्षण का केंद्र रहा और हजारों रुपये की आमदनी भी की।

खेलकूद में किया परांगत, प्रदेश में हासिल किया तीसरा स्थान
संगीता फरासी ने बच्चों को शिक्षा के साथ सांस्कृतिक गतिविधियों और खेलकूद में भी निपुण किया। इन बच्चों में से एक राज्यस्तर पर खेलकूद में तीसरा स्थान प्राप्त कर चुका है। वास्तव में देखा जाए तो संगीता फरासी जैसी शिक्षिका इन बच्चों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं है। वे इन बच्चों को समाज की मुख्यधारा में लाने का नेक कार्य कर रही हैं। साथ ही उनके सपनों को पंख लगा रही हैं। वे आज लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।