कोरोना काल में दुबई से काम छोड़कर गांव लौटे पाली मगरौं निवासी भीम सिंह नेगी ने बेरोजगार ढाबा खोलकर रोजगार के अवसर सृजित किये हैं। यह ढाबा श्रीनगर राजमार्ग पर कांडीखाल के पास है। नेगी ने तीन अन्य साथियों को भी ढाबे में रोजगार दिया है। भीम सिंह नेगी ढाबे से प्रतिदिन औसतन पांच से सात हजार रुपये की कमाई कर रहे हैं।
रूट से हटकर होने के कारण बिजली – पानी की समस्या के चलते ढाबे के संचालन में आ रही दिक्कतों के बावजूद नेगी पूरी तन्मयता से ढाबे को चला रहे हैं। नेगी 15 मार्च को दुबई से सैफ का काम छोड़कर गांव लौटे थे। लगभग साढ़े चार माह तक रोजगार के लिए हाथ-पैर मारते रहे। कोई रास्ता नहीं सूझा तो कांडीखाल के पास श्रीनगर राजमार्ग पर अपनी भूमि पर पिता से राय मशविरा करने के बाद ढाबा खोलने का निर्णय लिया।
दो माह पहले उन्होंने लगभग पचास हजार रुपये की पूंजी लगाई और छप्पर डालकर बेरोजगार ढाबा शुरू किया। ढाबे के नाम में इनके कुछ माह बेरोजगारी के संघर्ष की टीस भी छुपी है। इसीलिए ढाबे का अनोखा व यूनिक नाम बेरोजगार ढाबा रखा, जो लोगों को अपनी ओर खासा आकर्षित भी करता है।
ढाबे से चंद्रबदनी मंदिर सहित पौड़ी, दुगड्डा और श्रीनगर के प्राकृतिक नजारे दिखते हैं। इसके चलते आने-जाने वाले ढाबे पर बैठकर
पकवानों सहित प्राकृतिक नजारों का भी आनंद लेते हैं। ढाबे में चाऊमीन, इडली डोसा, मोमा, पानी-पूरी, आलू-टिक्की, पराठे, झंगोरा खीर सहित सेलेक्टेड नान वेज आइटम मुहैया कराये जाते हैं। इसके साथ गांव का दूध, दही, मट्ठा व घी भी परोसा जाता है।
भीम सिंह नेगी काफी खुश हैं। उन्होंने कहा कि गांव लौटा तो यहां भी चारों ओर बेरोजगारी थी। करीब साढ़े चार माह रोजगार को लेकर सोचता रहा। राजमार्ग पर भूमि होने पर पिता से विचार कर दो माह पहले ही उसी नाम से ढाबा खोला, जिससे जूझ रहा था। साथ में गांव के रजत सिंह, दीपक सिंह और मुकेश काम दिया। पिता चालक हैं, तीन भाई व दो बहनें हैं। भाई भी बेरोजगार हैं। इसलिए बेरोजगारी से निजात पाने को अपने सैफ के हुनर को ढाबे के माध्यम से रोजगार के लिए उपयोग में लाने का विचार बनाया। ढाबा बेहतर रोजगार दे रहा है। ढाबे में बिजली व पानी की किल्लत है। रात को सभी साथी ढाबे में ही सोते हैं। सुबह उठकर काम पर लग जाते हैं।