उत्तराखंड के 11 वें मुख्यमंत्री के रूप में रविवार को बागड़ोर संभालने वाले पुष्कर सिंह धामी को सब्र का मीठा फल नसीब हुआ। हालांकि पद संभालते ही उनकी अग्निपरीक्षा भी शुरू हो जाएगी । अब 2022 में विधानसभा चुनाव में पार्टी की नैया को पार कराने का दारोमदार उन्हीं के कंधों पर होगा। कोविड-19 समेत तमाम अन्य चुनौतियों के बीच उन्हें ही चुनाव में जीत का रास्ता तलाशना है। पूरी भाजपा को जीत के इस रास्ते पर आगे तक ले जाने की भी उन पर बेहद अहम जिम्मेदारी होगी।
-कोश्यारी के बाद कुमाऊं मंडल से मुख्यमंत्री बनने वाले दूसरे नेता
-मंत्री पद की दौड़ में पीछे रहने वाले धामी सीधे बन गए मुख्यमंत्री
धामी की नियुक्ति के साथ ही उत्तराखंड के सियासी इतिहास में एक बात चमकदार अक्षरों में दर्ज हो गई है। यह बात धामी के बगैर मंत्री बने सीधे मुख्यमंत्री बन जाने से जुड़ी है। उत्तराखंड में इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीतने के बाद इससे मिलता-जुलता, लेकिन छोटा प्रयोग पार्टी ने जरूर किया था। तब पहली बार विधायक बनने वाले डाॅ. धन सिंह रावत को सीधे मंत्री बना दिया गया था। मगर धामी ने जो इतिहास रचा है, वह बहुत बड़ा और असाधारण है। पार्टी ने लंबे समय से अपना मुख्यमंत्री न होने की वजह से उपेक्षित महसूस कर रहे कुमाऊं मंडल को भी अब संतुष्ट कर दिया है।
साल 2001 में प्रदेश में भाजपा की अंतरिम सरकार के गठन के बाद भगत सिंह कोश्यारी को ऐन चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बनाया गया था। वह नित्यानंद स्वामी सरकार में मंत्री थे। इसके बाद जब 2007 में भाजपा की प्रदेश में सरकार आई तब गढ़वाल मंडल के बीसी खंडूरी और डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री की कुर्सी नसीब हुई थी। साल 2017 में फिर से भाजपा के सत्तासीन होने पर गढ़वाल मंडल के हिस्से में ही मुख्यमंत्री का पद गया था। त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद इसी वर्ष मार्च में सरकार का मुखिया बदला गया, तो गढ़वाल मंडल के ही तीरथ सिंह रावत को कमान सौंपी गई। सिलसिलेवार ढंग से गढ़वाल मंडल से मुख्यमंत्री बनाए जाने से कुमाऊं मंडल में पसर रही नाराजगी को भाजपा हाईकमान ने इस बार भांप लिया। इसीलिए चुनाव से कुछ महीने पहले ही कुमाऊं की खटीमा सीट से विधायक पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया गया।
वैसे भाजपा आलाकमान ने मुख्यमंत्री पद के लिए वर्तमान परिस्थितियों में जिन कसौटियों को तय किया, धामी उस पर एकदम सटीक बैठे। धामी की पृष्ठभूमि खालिस भाजपा की है। इसीलिए वह कांग्रेस पृष्ठभूमि वाले दिग्गज मंत्रियों सतपाल महाराज और डाॅ. हरक सिंह रावत पर भारी पडे़। भाजपा को चुनाव के माहौल में जिस ऊर्जावान युवा नेतृत्व की दरकार है, धामी उस उम्मीद पर भी खरा उतरते हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र के राज्यपाल और भाजपा के धुरंधर नेता भगत सिंह कोश्यारी का आशीर्वाद उन्हें फलीभूत हुआ है। यह कम दिलचस्प बात नहीं रही है कि दो बार के विधायक पुष्कर सिंह धामी का नाम हर बार मंत्री पद के लिए उछलता जरूर रहा, लेकिन वह कभी मंत्री नहीं बन पाए थे। अप्रत्याशित और असाधारण फैसले कर चौंकाने वाले भाजपा हाईकमान ने इस बार भी धामी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कर सभी को चौंका दिया। विधानसभा चुनाव से ऐन पहले ऐसे अपेक्षाकृत कम अनुभवी नेता को मुख्यमंत्री बना दिए जाने की लोगों को उम्मीद कम थी।
धामी के पक्ष में यह बात भी गई कि भाजपा में जाने-अनजाने तमाम उपेक्षाओं के बावजूद उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया। उनके इस सब्र ने ही उन्हें अब मीठा फल दिया है। यह जरूर है कि उन्हें यह मीठा फल उन स्थितियों के बीच मिला है, जहां कदम-कदम पर कडे़ इम्तिहान उनका इंतजार कर रहे हैं। कोविड-19 की दूसरी लहर पूरी तरह खत्म नहीं हुई है और तीसरी लहर की चर्चा जोरों पर हैं। उन्हें राज्य को सुरक्षित रखने के उपायों पर कड़ी मेहनत करनी होगी। इसके साथ ही अगले साल होने वाले चुनाव के लिए वह पार्टी का अब सबसे बड़ा चेहरा हैं। एंटी इनकमबेंसी को रोककर भाजपा को दोबारा सत्ता में लाने के लिए उन पर पार्टी ने उम्मीद जताई है। प्रचंड बहुमत की सरकार के बावजूद पांच साल में तीन -तीन मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति के आलोक में उठने वाले सवाल भी उनके सामने आएंगे।