भक्तों के जयकारे के साथ खुले भगवान रूद्रनाथ के कपाट

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रुद्रनाथ
गोपेश्वर,  समुद्र तल से 2290 मीटर की उंचाई पर स्थित चतुर्थ केदार भगवान रूद्रनाथ के कपाट रविवार को धार्मिक परंपराओं व पूजा विधान के साथ आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गये है। भगवान रूद्रनाथ के कपाट खुलते ही भक्तों ने जयकारे लगाकर वातावरण को भक्ति मय बना दिया।
हिमालयी धाम आखिरकार छह महीने तक पौराणिक गोपीनाथ मंदिर में निवास करने के बाद अब छह माह तक भगवान रुद्र कैलाश हिमालय में भक्तों को अपने दर्शन देंगे। रविवार को सुबह ब्रह्म बेला पर चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ के कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिये गये हैं। साफ और खुले मौसम में सैकड़ो भक्तों की मौजूदगी में वैदिक मंत्रोचार, विधि विधान और बाबा रुद्रनाथ के जयकारों के साथ कपाट खुले। कपाट खुलने के अवसर पर मंदिर को फूलों से सजाया गया था। इस मौके पर रूद्रनाथ के पुजारी मंयक तिवारी, विपिन भट्ट आदि मौजूद थे।
ये है रुद्रनाथ मंदिर
रुद्रनाथ मंदिर भारत के उत्तराखड राज्य के चमोली जिले में स्थित भगवान शिव पंचकेदारों में चतुर्थ केदार का मंदिर है। समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है, जबकि संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ में की जाती है। यहां पूजे जाने वाले शिव जी के मुख को ’नीलकंठ महादेव’ कहते हैं। यहां विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है, जहां शिवजी गर्दन टेढ़े किये हुए विराजमान हैं। माना जाता है कि, शिवजी की यह दुर्लभ मूर्ति स्वयंभू है, यानी अपने आप प्रकट हुई है और अब तक इसकी गहराई का पता नहीं लग पाया है। यहां भगवान शिव के रुद्र और शांत दोनों रूपों के दर्शन भक्तों को प्राप्त होते हैं। शीतकाल में बाबा गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में भक्तों को छह महीने तक दर्शन देते हैं।
ये है धार्मिक आस्था
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार पांडवों पर गोत्र हत्या का पाप लगा। इस पाप से मुक्ति के लिए पांडवों ने भगवान शिव की आराधना की। मगर भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। पांडवों ने भगवान शिव का पीछा किया तो उत्तराखंड के पंचकेदारों में भगवान शिव ने पांडवों को अपने शरीर के पांच अलग-अलग हिस्सों के दर्शन कराए। रुद्रनाथ में जब पांडवों को शिव के मुख दर्शन हुए तब जाकर उन्हें गोत्र हत्या से मुक्ति मिली।
यह भी है मान्यता
सती पार्वती ने जब अपने पिता के यहां आयोजित यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रण न देने का समाचार सुना तो उन्होंने आक्त्रोशित होकर उसी यज्ञ कुण्ड में अपने जीवन की आहुति दे दी। बताते हैं कि भगवान शिव ने रुद्रनाथ में तब तिरछी गर्दन कर नारद मुनि से सती का हाल जाना था।
बाबा का धाम प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना
रुद्रनाथ का समूचा परिवेश इतना अलौकिक है कि, यहां के सौन्दर्य को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। रुद्रनाथ मंदिर के सामने से दिखाई देती नन्दा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां यहां का आकर्षण बढाती हैं। इसके चारों ओर शायद ही ऐसी कोई जगह हो जहां हरियाली न हो, फूल न खिले हों। रास्ते में हिमालयी मोर, मोनाल से लेकर थार, थुनार व मृग जैसे जंगली जानवरों के दर्शन तो होते ही हैं, बिना पूंछ वाले शाकाहारी चूहे भी आपको रास्ते में फुदकते मिल जाएंगे। भोज पत्र के वृक्षों के अलावा, ब्रह्मकमल भी यहां की घाटियों में बहुतायत में मिलते हैं।