डॉलर के मुकाबले रो पड़ा रुपया : पप्पू गोस्वामी

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भारत का रुपया लुढ़क रहा है। ट्रेडवार और वैश्विक उथलपुथल का असर भारत के करेंसी मार्केट पर भी काफी असर डालता हुआ नजर आने लगा है। सोमवार को एक ही दिन में रुपया 1.09 रुपया गिर गया और लुढ़ककर 69.93 के स्तर पर पहुंच गया।

मंगलवार को रुपये में कुछ मजबूती आने की उम्मीद थी और ये नौ पैसे मजबूत होकर खुला भी, लेकिन मिड डे ट्रेडिंग में ये एक बार फिर ऐतिहासिक गिरावट का शिकार होकर 70.08 रुपये के स्तर पर पहुंच गया। रुपये के इतिहास में पहली बार इसकी इस स्तर तक गिरावट हुई है। इसके पहले 20 जुलाई 2018 को रुपया 69.13 के स्तर तक गिरा था।

देखा जाए तो रुपये की कीमत में एक दिन में इतनी बड़ी गिरावट तीन सितंबर 2013 के बाद हुई है। डॉलर के मुकाबले रुपये में आई भारी गिरावट का संबंध निश्चित रूप से वैश्विक अर्थव्यवस्था से है। पहले भी इस बात की आशंका जताई गई थी कि अंतरराष्ट्रीय उथल-पुथल की वजह से रुपया 70 के स्तर से भी नीचे जा सकता है। अभी की गिरावट को लेकर हालांकि तात्कालिक तौर पर यही कहा है कि तेल आयात करने वाली कंपनियों की ओर से डॉलर की मांग में हुई जबरदस्त वृद्धि की वजह से रुपया इतना कमजोर हुआ है। इसे तात्कालिक कारण जरूर माना जा सकता है, लेकिन सच्चाई यही है कि डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है। अगले महीने अमेरिका में एक बार फिर ब्याज दरों को बढ़ाए जाने की उम्मीद की जा रही है। इस वजह से भी डॉलर को मजबूती मिली है।

करंसी बाजार में रुपये की गिरावट का असर देश के शेयर मार्केट पर भी पड़ा है। गुरुवार को 38,000 के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर जाने वाला मुंबई स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक सेंसेक्स सोमवार को भारी बिकवाली के बाद गिरकर 37,645 के स्तर पर और एनएसई का सूचकांक निफ्टी 11,356 के स्तर पर बंद हुआ। हालांकि मंगलवार को शेयर बाजार की स्थित में कुछ सुधार जरूर हुआ और सेंसेक्स 207 अंक चढ़कर 37,852 पर तथा निफ्टी 79 अंक की उछाल के साथ 11,435 पर बंद हुआ।

रुपए की गिरावट का भारत पर नकारात्मक असर पड़ना तय है। इसकी वजह से आयात किए जाने वाली तमाम वस्तुएं महंगी हो जाएंगी। सबसे बुरा असर पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर पड़ेगा। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है। ऐसे में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में उछाल आना स्वाभाविक है। जिसकी वजह से भारतीय तेल कंपनियां पेट्रोल और डीजल डीजल के दाम में बढ़ोतरी भी कर सकती हैं। स्वाभाविक है कि अगर ऐसा हुआ तो माल ढुलाई का खर्च भी बढ़ेगा, जिससे महंगाई की रफ्तार और तेज हो सकती है। पेट्रोलियम के अलावा भारत दाल और खाद्य तेलों की भी बड़ी मात्रा में विदेशी बाजार से खरीदारी करता है। रुपये की कमजोरी की वजह से ये वस्तुएं भी महंगी हो जाएंगी।

आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय उथल-पुथल के इस दौर में जहां अमेरिकी डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है, वहीं तुर्की के मुद्रा संकट की वजह से भी करंसी बाजार में उथल पुथल तेज हुआ है। सोमवार को ही तुर्की मुद्रा लीरा में 11 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इसी तरह वेनेजुएला और ईरान की मुद्रा भी लगातार गिरावट के नए कीर्तिमान दर्ज कर रही है। उथल-पुथल के इस दौर में ग्लोबल मार्केट पर भी काफी असर पड़ा है। तुर्की से मेटल इंपोर्ट पर अमेरिका के दोगुने इंपोर्ट ड्यूटी लगाने के फैसले के बाद फॉरेक्स मार्केट में भूचाल आ गया है। सबसे बड़ी बात तो ये है की भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती की वजह से रुपये में तेज गिरावट भले ही नहीं आई है, लेकिन रुपया ऑल टाइम लो लेवेल पर पहुंच गया है। यह स्थिति चिंताजनक है।

हालांकि ऐसा नहीं है कि रुपये की कीमत में गिरावट से सिर्फ नुकसान ही है। कुछ क्षेत्रों में रुपये की गिरावट से फायदा भी होगा। उदाहरण के लिए फार्मा सेक्टर, ऑटोमोबाइल सेक्टर ऑटो सेक्टर जैसे निर्यात आधारित सेक्टर्स को रुपये की गिरावट से निश्चित रूप से फायदा होगा। लेकिन अगर समग्र रूप से अर्थव्यवस्था की मजबूती की बात की जाए, तो रुपये की गिरावट चिंताजनक संकेत देती है। रुपये की कीमत एक बार 70 के स्तर को पार कर चुकी है। ऐसे में रिजर्व बैंक को तत्काल सुरक्षात्मक उपाय करने होंगे। सबसे पहली चुनौती तो रुपये को 70 के स्तर को पार करने से रोकने का है। यदि रुपये की कीमत 70 के मनोवैज्ञानिक स्तर को भी पार कर बंद होती है, तो फिर इसे थामना बहुत आसान नहीं होगा।

ये तो तय है कि रुपये की कीमत पर अंतरराष्ट्रीय उथल पुथल का असर पड़ा है। यही कारण है कि मंगलवार को वित्त मंत्रालय ने भी बयान जारी करके लोगों से नहीं घबराने की अपील की है। सरकार का मानना है कि ये गिरावट बाहरी कारकों की वजह से हो रही है और आगे चलकर इसमें सुधार होने की उम्मीद है। लेकिन सरकार के इस बयान को लेकर ही निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता है। रुपये की कीमत में गिरावट को रोकना जरूरी है। रुपये की कीमत को थामने के उपायों में ब्याज दरों में बढ़ोतरी करना भी एक तरीका हो सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने इस साल लगातार दो बार ब्याज दरों में इजाफा किया है। रुपये की कमजोरी को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि केंद्रीय बैंक एक बार फिर ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने का तरीका अपना सकता है। एशियाई देशों में भारत के अलावा इंडोनेशिया और फिलीपींस ने भी बीते महीनों में अपनी मुद्रा की कीमत थामने के लिए ब्याज दरों में तेज बढ़ोतरी करने की नीति अपनायी है।

इसके साथ ही आरबीआई को फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में दखल देकर भी इस मसले को हल करने की कोशिश करनी चाहिए। करंसी की बिगड़ती स्थिति को सुधारने में टैरिफ में भी इजाफा करने का उपाय अपनाया जा सकता है। आयात को कम करके डॉलर की मांग में कमी लाने के लिए पहले भी अपने देश में टैरिफ में इजाफा किया जाता रहा है। अब चालू खाता घाटे को नियंत्रित करने के लिए ऐसा फिर से किया जा सकता है। इसके पहले 2013 में भी भारत ने रुपये की गिरावट को थामने के लिए गोल्ड और ज्वेलरी के आयात पर टैरिफ को बढ़ा दिया था। इसके साथ ही 2013 की तरह ही प्रवासी भारतीयों से भी विदेशी मुद्रा में सहयोग की अपील की जा सकती है।

जानकारों का कहना है कि यदि कैपिटल फ्लो में सुधार नहीं होता है, तो आरबीआई की ओर से 20 अरब डॉलर तक की रकम चालू खाते के घाटे को कम करने के लिए दी जा सकती है। लेकिन इन उपायों से भी ज्यादा अहम बात तो ये है कि भारत को ट्रेडवार के इस दौर में समझदारी से काम लेते हुए वैश्विक शक्तियों के साथ तालमेल बैठाने की कोशिश करनी चाहिए। उथलपुथल के इस दौर में लगभग हर देश की मुद्रा डॉलर की तुलना में कमजोर हो रही है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि दुनिया भर की तमाम आर्थिक शक्तियां परस्पर सहयोग का रवैया अपनाएं और समझदारी से काम लें। क्योंकि अगर ट्रेड वार के साथ ही दुनिया में करंसी वार भी बढ़ा तो इसका नुकसान सिर्फ भारत या अन्य विकासशील देशों को ही नहीं होगा, बल्कि इसकी मार विकसित देशों को भी झेलना पड़ेगा।