नई दिल्ली, अयोध्या मामले की सुनवाई एक बार फिर से आठ हफ़्ते के लिए टल गई है। कोर्ट ने सभी पक्षों को दस्तावेजों का अनुवाद देखने के लिए छह हफ्ते का वक्त दिया है। मध्यस्थता के मामले पर सुप्रीम कोर्ट पांच मार्च को निर्णय करेगा।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री की रिपोर्ट में बताया गया कि अभी भी कोर्ट के ऑफिसियल ट्रांसलेटर द्वारा हजारों पेज का अनुवाद किया जाना बाक़ी है। इस पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सभी पक्षकारों से पूछा कि क्या वो उत्तरप्रदेश सरकार और दूसरे पक्षकारों की ओर से जमा कराई गई ट्रांसलेटेड कॉपी को स्वीकारने के लिए तैयार हैं?
चीफ जस्टिस ने कहा कि जब सब पक्षकार दस्तावेजों के सही अनुवाद को लेकर निश्चिंत हो जाएंगे, तब हम सुनवाई शुरू कर सकते हैं। एक बार जब हम अयोध्या मामले की सुनवाई शुरू कर देंगे, हम नहीं चाहते कि बाद में कोई भी पक्षकार अनुवाद में खामी का हवाला देकर सुनवाई टालने की मांग करे।
मुस्लिम पक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि हम उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दी गई ट्रांसलेटेड कॉपी का क्रास चेक करना चाहते हैं। रामलला की ओर से वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि इसके लिए अवसर पहले ही दिया गया था उस समय कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई गई थी। अब उसकी समय सीमा खत्म हो चुकी है। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि यही तो हम कहना चाह रहे हैं। अगर पक्षकार सहमत हैं तो हम आगे की सुनवाई शुरू कर सकते हैं। चीफ जस्टिस ने मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश वकील राजीव धवन से पूछा कि दस्तावेजों के अनुवाद को परखने में कितना वक़्त लेंगे। तब राजीव धवन ने कहा कि 8 से 12 हफ्ते का वक़्त लगेगा।
सुनवाई के दौरान जस्टिस बोब्डे ने मध्यस्थ बनने का ऑफ़र दिया । उन्होंने कहा कि ये कोई निजी संपत्ति को लेकर विवाद नहीं है, मामला पूजा-अर्चना के अधिकार से जुड़ा है। अगर समझौते के जरिए एक फीसदी भी इस मामले के सुलझने का मौका हो, तो इसकी कोशिश होनी चाहिए। हिंदू और मुस्लिम पक्षकार दोनों ने कोर्ट की पहल की सफलता पर शक जताया। दोनों की राय थी कि मध्यस्थता के जरिये विवाद को सुलझाने की कोशिश पहले भी नाकामयाब हो चुकी है । तब जस्टिस बोब्डे ने कहा कि हम एक प्रॉपर्टी विवाद को सुलझा सकते हैं परन्तु हम रिश्तों को बेहतर करने पर विचार कर रहे हैं।
इस संविधान बेंच में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एस ए बोब्डे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़,जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
इस मसले पर पिछले 29 जनवरी को सुनवाई होनी थी लेकिन जस्टिस एसए बोब्डे के उपलब्ध नहीं होने की वजह से सुनवाई टल गई थी। पिछले 10 जनवरी को जस्टिस यूयू ललित ने वकील राजीव धवन की ओर से एतराज़ जताए जाने के बाद खुद ही बेंच से हटने की बात कही थी। धवन ने कहा था कि 1995 में जस्टिस ललित बतौर वकील यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के लिए पेश हुए थे । जस्टिस यूयू ललित के सुनवाई से हटने की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई टाल दी थी।
अयोध्या मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर अविवादित जमीन से यथास्थिति का आदेश वापस लेने की मांग की है। केंद्र सरकार ने 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था और सिर्फ 0.313 एक़ड़ जमीन पर विवाद है। बाकी जमीन को रिलीज करने के लिए याचिका दायर की गई है।
इस्माइल फारुकी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि जो जमीन बचेगी उसे उसके सही मालिक को वापस करने के लिए केंद्र सरकार बाध्य है। इसमें 40 एकड़ ज़मीन राम जन्मभूमि न्यास की है। हम चाहते हैं कि इसे उन्हें वापस कर दी जाए साथ ही वापस करते समय यह देखा जा सकता है कि विवादित भूमि तक पहुंच का रास्ता बना रहे। उसके अलावा जमीन वापस कर दी जाए। केंद्र सरकार ने कहा है कि जमीन वापस करते समय यह देखा जा सकता है कि विवादित भूमि तक पहुंच का रास्ता बना रहे। उसके अलावा जमीन वापस कर दी जाए।
केंद्र सरकार ने याचिका में कहा है कि 2003 में जब सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर में शिलापूजन की अनुमति नहीं दी थी तो विवादित भूमि और अधिगृहित की गई 67 एकड़ की जमीन पर यथास्थिति बहाल रखने का आदेश दिया था।
केंद्र सरकार ने 1993 में इस जमीन का अधिग्रहण किया था। इस्माइल फारुकी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि जो जमीन बचेगी उसे उसके सही मालिक को वापस करने के लिए केंद्र सरकार बाध्य है। इसमें 40 एकड़ ज़मीन राम जन्मभूमि न्यास की है।
27 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के फैसले से अयोध्या मसले पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि इस्माइल फारुकी का मस्जिद संबंधी जजमेंट अधिग्रहण से जुड़ा हुआ था। इसलिए इस मसले को बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा। जस्टिस अशोक भूषण ने फैसला सुनाया था, जो उनके और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का फैसला था। जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर ने अपने फैसले में कहा कि इस्माईल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजा जाए।