पेगासस जासूसी मामले की जांच करेगी कमेटी, आठ सप्ताह में रिपोर्ट देने का सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

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सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले की सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में जांच का आदेश दिया है। तीन सदस्यीय इस कमेटी की अध्यक्षता जस्टिस आर.वी. रविन्द्रन करेंगे। इस कमेटी के दूसरे सदस्य होंगे संदीप ओबेराय और आलोक जोशी। ये कमेटी जांच करेगी कि पेगासस से नागरिकों की निजता का हनन हुआ है कि नहीं। कोर्ट ने कमेटी को आठ हफ्ते में रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई आठ हफ्ते के बाद होगी।

कोर्ट ने इस जांच कमेटी की मदद के लिए तीन सदस्यीय तकनीकी कमेटी का गठन किया है। तकनीकी कमेटी में नेशनल फोरेंसिक साइंस युनिवर्सिटी, गांधीनगर के डीन प्रोफेसर डॉक्टर नवीन कुमार चौधरी, अमृता विश्व विद्यापीठम, अमृतापुरम केरल के प्रोफेसर प्रभाहरण पी और आईआईटी बांबे के प्रोफेसर डॉक्टर अश्विन अनिल गुमाश्ते शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की स्वयं की विशेषज्ञ कमेटी बनाने की दलील को खारिज करते हुए कमेटी का गठन किया है। चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि कानून का शासन और संविधान सर्वोपरि है। यह जरूरी है कि नागरिकों की निजता के अधिकार की रक्षा हो। कोर्ट ने कहा कि निजता के अधिकार की सीमा है लेकिन वो संविधान के दायरे में होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि कुछ याचिकाकर्ता सीधे-सीधे प्रभावित हैं और कुछ ने जनहित याचिका दायर की है।

कोर्ट ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल की यह दलील सही नहीं है कि याचिकाएं निजी स्वार्थ के लिए दायर की गई हैं। सरकार हमेशा सुरक्षा की दलील देकर भाग नहीं सकती है। कोर्ट इस मामले में मूकदर्शक बनी नहीं रह सकती है। कोर्ट ने कहा कि लोगों की अनियंत्रित जासूसी की इजाजत नहीं दी जा सकती क्योंकि जासूसी से अभिव्यक्ति की आजादी और पत्रकारिता पर खतरनाक प्रभाव पड़ता है।

कोर्ट ने 13 सितंबर को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान केंद्र ने निष्पक्ष कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया था जो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था याचिकाकर्ता चाहते हैं सरकार लिख कर दे कि वह सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करती है या नहीं। हमारा मानना है कि हलफनामा दाखिल कर इस पर बहस नहीं कर सकते। आईटी एक्ट की धारा 69 सुरक्षा के लिहाज से सरकार को निगरानी की शक्ति देती है। हम निष्पक्ष कमेटी बनाएंगे। तब चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा था कि आप कह रहे हैं कि इस पर याचिका दायर नहीं हो सकती है। तब मेहता ने कहा था याचिका हो सकती है, पर सार्वजनिक चर्चा नहीं। हम देश के दुश्मनों तक ऐसी जानकारी जाने नहीं दे सकते हैं। तब चीफ जस्टिस ने कहा था कि हमने कहा था कि संवेदनशील जानकारी हलफनामे में न लिखी जाए। बस यही पूछा था कि क्या जासूसी हुई, क्या सरकार की अनुमति से हुआ।

सुनवाई के दौरान वकील श्याम दीवान ने कहा था आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञ संदीप शुक्ला के हलफनामा का उदाहरण देते हुए बताया था कि जिसकी जासूसी हुई उसे पता ही नहीं चल पाता। दीवान ने कहा था अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ आनंद वी ने भी हलफनामा दाखिल किया है। बताया है कि इससे प्रभावित व्यक्ति के फोन में दूसरा सॉफ्टवेयर भी डाला जा सकता है। पत्रकार परांजय गुहा के वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा था कि सिविल प्रोसीजर कोड कहता है कि प्रतिवादी अगर किसी आरोप से इनकार करे तो वह स्पष्ट हो। सरकार आरोप को बेबुनियाद बता रही है, फिर कमेटी बनाने का भी प्रस्ताव दे रही है। द्विवेदी ने कहा था कि इसका इस्तेमाल सरकार ही कर सकती है। अभिव्यक्ति को प्रभावित किया जा रहा है।

18 अगस्त को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने साफ किया था कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के हिसाब से संवेदनशील किसी भी बात पर सरकार को बाध्य नहीं कर रहा। कोर्ट ने कहा था कि हम नोटिस बिफोर एडमिशन जारी कर रहे हैं, कमिटी के गठन पर बाद में फैसला लेंगे।

कोर्ट ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से पूछा था कि क्या आप और कोई हलफनामा दाखिल नहीं करना चाहते। तब मेहता ने कहा था कि भारत सरकार कोर्ट के सामने है। याचिकाकर्ता चाहते हैं कि सरकार यह सब बताए कि वह कौन सा सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करती है, कौन सा नहीं। राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में यह सब हलफनामे के रूप में नहीं बताया जा सकता है। सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा था कि सरकार को शपथ लेकर बताना था कि क्या उसने कभी भी पेगासस का इस्तेमाल किया। इस बिंदु पर कोई साफ बात नहीं कही है। सिर्फ आरोपों का खंडन कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट में पेगासस की जांच की मांग करते हुए पांच याचिकाएं दायर की गई थीं। याचिका दायर करने वालों में वकील मनोहर लाल शर्मा, सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास, वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार, परांजय गुहा ठाकुरता समेत पांच पत्रकार और एडिटर्स गिल्ड की याचिका शामिल थी।