अगस्त्यमुनि ब्लॉक के दूरस्थ राजकीय प्राथमिक स्कूल देवल-बीरों में तैनात स्कूल प्रभारी प्रधानाध्यापिका सरिता पंवार ने ऐसी मिसाल पेश की है जिसकी बाते तो सब करते हैं पर उसे अपने जीवन में अमल करने से परहेज करते हैं। सरिता पंवार ने अपने दोनों बच्चों को जो पहले एक प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ रहे थे वहां से हटाकर अपने स्कूल में एडमिशन कराया है। सरिता की इस पहल से ना केवल एक मिसाल कायम हुई है बल्कि लोगों को यह संदेश भी मिल रहा है कि शिक्षा के लिए राज्य से पलायन करना ही एक विकल्प नहीं है।
मूल रुप से रुड़की की रहने वाली सरिता पंवार राजकीय प्राथमिक विद्यालय बीरो-देवल अंबेडकर बस्ती के स्कूल में तैनात हैं। उन्होंने इसी स्कूल में अपनी बेटी तृषा और बेटे अभिनंदन का क्लास 3 और क्लास 4 में एडमिशन कराया है।
इस बारे में बात करते हुए सरिता ने बताया कि “मैं अपने स्कूल में बच्चों पर खासी मेहनत कर रही हूं तो मैने सोचा क्यों ना अपने बच्चों को भी वहीं पढ़ाया जाए। बच्चों के बौधिक विकास और दूसरी बातों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने यह कदम उठाया है।” सरिता ने कहा कि इस स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने का मेरा मुख्य कारण था कि मेरे बच्चें भी समाज में सहभागिता का गुण सिखेंगे। अप्रैल में हुई अपनी पोस्टिंग के बाद सरिता ने यह फैसला लिया कि उनके बच्चे भी इसी स्कूल में पढ़ेंगे जिसमें बाकी बच्चे पढ़ रहे हैं।
हालांकि राज्य में सरकारी स्कूलों के हालात से हर कोई वाकिफ है। कहीं बच्चे हैं तो शिक्षक नदारद है और जहां शिक्षक हैं वहां से बच्चे नदारद हैं। ऐसे में एक शिक्षक का अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना वाकई सराहनीय कदम है। इससे समाज में बसे सरकारी स्कूलों के प्रति नकारात्मकता को कहीं ना कहीं कम किया जा सकता है। सरिता के इस कदम से क्षेत्र के सभी लोग सरिता की सराहना कर रहे हैं।
राज्य में हो रहे पलायन की समस्या एक ऐसी बीमारी है जो दिन पर जिन बढ़ती जा रही है।लेकिन पलायन की वजह को अगर पास से समझने की कोशिश करें तो समस्या गंभीर है।गांवों में शिक्षा का अभाव, अस्पतालों की कमी और भी बहुत कुछ इसके कारण है।लेकिन इन चीजों की परवाह किए बगैर अगर कोई पलायन को रोकने की मिसाल कायम करें तो यह वाकई सराहनीय है।