प्रदेश में जलस्त्रोतों के रिचार्ज व जैविक खेती में सहयोग करें वैज्ञानिक: राज्यपाल

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देहरादून। उत्तराखंड में जैविक खेती में उत्पादकता बढ़ाने व जलस्त्रोतों के रिचार्ज की तकनीक विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों को आगे आना चाहिए। राज्य में लगातार आ रहे भूकम्पों के प्रभाव व ग्लेशियरों की स्थिति का सैटेलाईट अध्ययन किया जाए। प्रदेश के राज्यपाल डॉ. कृष्ण कांत पॉल ने यह बात कही। उन्होंने वैज्ञानिकों से कृषि क्षेत्र में नवीन प्रयोगों और शोध करने की बात कही।
बुधवार को झाझरा स्थित विज्ञान धाम में यूकाॅस्ट द्वारा आयोजित 12वीं उत्तराखंड स्टेट साईंस एंड टेक्नोलोजी कांग्रेस का शुभारंभ करते हुए प्रदेश के राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखंड के संदर्भ में कुछ क्षेत्रों में वैज्ञानिकों को भूमिका निभानी होगी। आज भी किसानों में जैविक खेती को लेकर उतना उत्साह नहीं है। रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता में कमी आती है। वैज्ञानिक, इस तरह की तकनीक विकसित करें जिससे जैविक खेती में उत्पादकता बढ़े और किसान रासायनिक उर्वरकों की बजाय जैविक खेती को अपनाने के लिए प्रेरित हों। कहा कि उत्तराखंड में पानी की कमी का अंदेशा व्यक्त किया जा रहा है। नदियों व जलस्त्रोतों के सूखने से यह समस्या उत्पन्न हो रही है। गांवों में पानी की कमी से पलायन को बढ़ावा मिलता है और खेती पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है। जलस्त्रोतों व नदियों को पुनर्जीवित करने में वैज्ञानिकों को विशेष तौर पर ध्यान देना चाहिए।
राज्यपाल ने कहा कि नेपाल में आए भूकम्प के बाद उत्तराखंड में 47 झटके आ चुके हैं। इनके प्रभावों का सैटेलाईट के माध्यम से अध्ययन किया जाना चाहिए। ग्लेशियरों व हिमपात का नदियों के जलस्तर से सीधा संबंध है। इनका भी सैटेलाईट अध्ययन जरूरी है। कहा कि पर्यावरण व जैव विविधता की दृष्टि से उत्तराखंड महत्वपूर्ण राज्य है। दूसरी ओर यहां के विकास के लिए ऊर्जा की आवश्यकता भी है। इसलिए स्थायी विकास के लिए ऊर्जा व पर्यावरण में किस प्रकार संतुलन स्थापित किया जा सकता है, इसका भी वैज्ञानिक अध्ययन किया जाए। राज्यपाल ने कहा है कि किसी भी देश की प्रगति में विज्ञान की अहम भूमिका होती है। यही कारण है कि हमारे संविधान में मौलिक कर्तव्य के तौर पर नागरिकों से वैज्ञानिक दृष्टिकोण की अपेक्षा की गई है। सिर्फ विज्ञान की शिक्षा को बढ़ावा ही नहीं देना बल्कि विज्ञान व तकनीक का मानव कल्याण के लिए प्रयोग करना है।
प्राचीन भारत में विज्ञान काफी विकसित था। एस्ट्रोनोमी, अंकगणित, बीजगणित सहित ज्ञान विज्ञान की विभिन्न धाराओं में भारत का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। बाद में कुछ गैप आ गया परंतु अब फिर से भारत विज्ञान के क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ रहा है। आज से कुछ वर्षों पूर्व हम अपनी सैटैलाईट लांच करने के लिए दूसरे दूशों पर निर्भर थे, वहीं अब तमाम देश अपने सैटेलाईट लांच करने के लिए भारत की सहायता लेते हैं। राज्यपाल ने यूकाॅस्ट की ओर से रेडियोकेमिस्ट्री एंड आईसोटाॅप गु्रप, भाभा आॅटोमिक रिसर्च सेंटर के निदेशक डाॅ. बीएस तोमर, नेशनल सीड्स काॅरपोरेशन लिमिटेड के सीएमडी विनोद कुमार गौड़ व उत्तराखंड आवासीय विवि के कुलपति प्रोफेसर एचएस धामी को विज्ञान में एक्सीलेंस अवार्ड से सम्मानित किया। शिक्षक मनीष जगूड़ी को एनएएसआई के उत्कृष्ट विज्ञान शिक्षक अवार्ड से सम्मनित किया गया। कार्यक्रम में सचिव रविनाथ रमन, यूकाॅस्ट के महानिदेशक डाॅ. राजेंद्र डोभाल सहित देशभर से आए वैज्ञानिक, स्काॅलर व छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।