देहरादून। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने भारतीय पेट्रोलियम उद्योग परिसंघ (एफआईपीआई) के सहयोग से दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। ‘तेल एवं गैस क्षेत्र में संक्षारण का प्रबंधन’ विषय पर आयोजित हुई कार्यशाला में विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे।
सीएसआइआर-मानव संसाधन विकास केंद्र द्वारा गाजियाबाद में आयोजित की गई कार्यशाला में विशेषज्ञों ने विषय ये जुड़े कई अहम पहलुओं पर अपनी रिसर्च और विचार साझा किए। कार्यशाला का शुभारंभ सीएसआईआर-आईआईपी के निदेशक डॉ. अंजन रे व महानिदेशक एफआईपीआई आरके मल्होत्रा द्वारा किया गया। मुख्य अतिथि मल्होत्रा ने संक्षारण के कारण पाइपलाइनों, पुलों, सार्वजनिक भवनों से लेकर वाहनों, जल एवं अपषिष्ट जल-प्रणालियों और घरेलू अनुप्रयुक्तियों तक को पहुंचने वाले खतरों के बारे में चर्चा की। विश्वभर में संक्षारण-अध्ययनों की लागत से प्रकट होता है कि आकलित प्रत्यक्ष लागत 2.5 बिलियन डाॅलर से अधिक है और यह प्रत्येक राष्ट्र के सकल घरेलू उत्पादन का लगभग 3-4 प्रतिशत है। यह आंकलन किया गया है कि संक्षारण की वार्षिक लागत को 25 से 30 प्रतिशत तक बचाया जा सकता है, यदि संक्षारण इष्टतम प्रबंधन पद्धतियां अपना ली जाएं। इस दौरान डॉ. मल्होत्रा ने एक ‘सारांश पुस्तिका’ व ‘स्मारिका’ का भी विमोचन किया। सीएसआइआर-केंद्रीय विद्युत-रासायनिक अनुसंधान संस्थान के निदेशक डाॅ. विजय मोहनन पिल्लै ने ‘संक्षारण अनुुसंधान पर नैनो-प्रौद्योगिकी का प्रभाव’ विषय पर पूर्ण-सत्र व्याख्यान दिया। उन्होंने विलेपन सामग्रियों पर नैनो-प्रौद्योगिकी के महत्व पर बल दिया और इलेक्ट्रॅानिक सामग्रियों, स्व-सक्षम सामग्रियों, रासायनिक संवेदकों के लिए सामग्रियों और संक्षारण की रोक-थाम के अनुप्रयोगों के विशिष्ट उदाहरण दिए। इसके अलावा वक्ताओं ने तेल एवं गैस उद्योगों में संक्षारण की समस्याएं, रासायनिक उपचार, धातुकर्मपरक हल, विलेपन एवं कैथोडीय सुरक्षा के माध्यम से संक्षारण का शमन व इसके साथ ही विफलता विश्लेषण और संक्षारण के पहलुओं पर जानकारी दी। डाॅ. आरसी सक्सेना ने वोट आॅफ थैंक्स दिया। कार्यशाला में तेल एवं गैस क्षेत्र के अठारह विशिष्ट वक्ता व साथ ही अग्रणी क्षेत्र के अनुसंधान एवं नवीन तथा महत्वपूर्ण विचारों के प्रयोग में संलग्न राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं के वैज्ञानिकों के एक पैनल को भी आमंत्रित किया गया था, ताकि वे संक्षारण प्रौद्योगिकीविदों के समक्ष अपने विशेषतापूर्ण विचार रखकर समस्या पर चर्चा कर सकें व फलदायक निष्कर्षों पर पहुंच सकें। इस मौक पर काफी संख्या में वैज्ञानिक व रिसर्च स्कॉलर भी मौजूद रहे।