नेपाली मूल के धामी बहादुर निस्वार्थ भाव से कर रहे गोसेवा

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गोपेश्वर,  नेपाली मूल के धामी बहादुर किसी प्रेरणा से कम नहीं है। न प्रचार की सोच न कुछ पाने की ललक, न ही किसी से कोई सहायता, फिर भी निस्वार्थ भाव से पशुओं की सेवा में लगे हैं। धामी 45 साल पूर्व यहां मजदूरी करने आये, एक दो बार नेपाल भी गए। अब पिछले लगभग 20 वर्षों से यही इसी स्थान पर मजदूरी करते है और गोसेवा भी कर रहे हैं।

विकासखंड थराली के ग्राम पंचायत मेटा मल्ला से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर घनघोर जंगलों के बीच बिनसर भैंसवाल नामक तोक में 75 साल के धामी बहादुर आवारा पशुओं व ग्रामीणों से मिलने वाले पशुओं की निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं। इनकी पास वर्तमान में लगभग 22 गाय और बैल है। इनकी चारे एवं नमक की व्यवस्था धामी खुद मजदूरी कर करते हैं। पूर्व में एक समय इनके पास लगभग 50 गाय-बैल थे। जो गाये दूध नहीं देती है और जो बैल हल लगाने में असमर्थ हो जाते हैं उन्हें क्षेत्रों के लोग इनके पास पालने के लिए भेज देते हैं।

पशुओं का अंतिम संस्कार भी धार्मिक परंपरा से
धामी पशुओं का अंतिम संस्कार हिन्दू धर्म की परंपरा से करते हैं। पशुओं के शव को वे गड्ढा खोदकर नमक व चूना डालकर कर दफनाते हैं। नमक आदि का खर्च भी वह स्वयं ही वहन करते हैं।

आवार पशुओं को देख मन होता था दुःखी
नेपाली मूल के धामी कहते हैं कि सड़क पर घूम रहे आवारा पशुओं की दशा देखके मन में ख्याल आया। बचपन से ही नेपाल में घर में पशुओं को पालते व उनकी पूजा करते देखा था। यह भी आवारा घूम रहे पशुओं को लाकर उनकी सेवा करता हूं। परिवार में बाल बच्चे भी नहीं हैं। जो भी मजदूरी कर कमाता हूं, इन्ही पर खर्च कर देता हूं। कभी-कभी गांव के लोग भी सहयोग करते हैं। गोसदन के लिए सरकारी मदद की बात पर कहते हैं उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है।

लोगों के लिए प्रेरणा
स्थानीय केशर सिंह नेगी एवं पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य सुषमा देवी ने बताया कि नेपाली मूल के धामी की पशु सेवा और गायों के प्रति उनका प्रेम प्रेरणा दायक है।