दून में यहां मिलेगा पारंपरिक पहाड़ी खाना नये अंदाज़ में

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पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी यहीं के काम आए इससे अच्छा कुछ हो भी नहीं सकता। ऐसे ही कुछ लोग इस युक्ति को सच कर रहे हैं।यूं तो पलायन उत्तराखंड राज्य की बड़ी समस्या है लेकिन अभी भी बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने बड़ी डिग्रियों के बाद भी पहाड़ को आगे बढ़ाने का सपना देखा और उसपर काम कर रहें हैं।

देहरादून में खाने के शौकिन लोग जरुर इसको पढ़ेगे। मसूरी डायवर्जन पर बनी ”पेसिफिक हिल्स” की बिल्डिंग अपने थीम बेस्ड आउटलेट के लिए जानी जाती है। इसी कड़ी में एक थीम बेस्ड आउटलेट है ”देसी चूल्हा”। जी हां नाम से ही देसी लगने वाला यह आउटलेट अपने खाने के जरिए आपको पहाड़े के स्वादिष्ट भोजन की याद दिला देगा। देसी चूल्हा के मालिक से कुछ खास बातचीत के अंश यहां पढ़ें।

सुरेंद्र अंथवाल

घंसाली टिहरी के पास बसे अंथवाल गांव के 28 साल के सुरेंद्र दत्त अंथवाल ने बिजनेस मैनेजमेंट यानि की एमबीए किया है। वह देसी चूल्हा के मालिक हैं। पेशे से एक बिजनेसमैन है और उनके शौक के बारे में पूछने पर सुरेंद्र ने बताया कि उन्हें बिजनेस करने के अलावा,कुछ नया करना,घूमना फिरना और हमेशा कुछ अलग करना पसंद है। एक बिजनेस बैकग्राउंड होने की वजह से सुरेंद्र हमेशा से एक पैसे वाला व्यापारी बनने की चाह रखते थे। लेकिन समय के साथ उन्होंने महसूस किया कि जिंदगी में पैसा होना सबकुछ नहीं होता बल्कि एक अच्छा सैटअप होना जरुरी है।कुछ ऐसा होना जिससे लोग आपको पहचाने और आपके काम की सराहना करें।

इस समय सुरेंद्र अपना सारा ध्यान अपने पसंदीदा रेस्टोरेंट देसी चूल्हा पर लगा कर रहें और इसके अलावा अपने दूसरे होटल और रेस्टोरेंट की देखरेख करते है। अपने सभी कामो में देसी चूल्हा उनके लिए खास है क्योंकि सुरेंद्र के मुताबिक कुछ ऐसा करना जो आपकी परंपरा और संस्कृति को जिवित करे उसका मज़ा ही अलग है।

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सुरेंद्र अपनी संस्कृति को दूर-दूर तक लोगों में पहुंचाना चाहते है और इसके लिए उन्होंने काम करना शुरु कर दिया है। भविष्य में देसी चूल्हा को लेकर उनके क्या प्लान है के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि ”अब मैं देसी चूल्हा की फ्रेंचाइजी यानि की शाखाएं खोलने की सोच रहा हूं ”। उत्तराखंड के अलग-अलग शहरों जैसे कि नैनीताल, ऋषिकेश, हरिद्वार,श्रीनगर, और बहुत सी जगहें सुरेंद्र के दिमाग में है जहां देसी चूल्हा को खोला जा सकता है।उत्तराखंड तो केवल शुरुआत है वह इस काम को पूरे देश में भी फैलाना चाहते हैं। इसके अलावा सुरेंद्र ने बताया कि देसी चूल्हा को यूरोप में खोलने के लिए भी उनकी बात किसी से हो रही जैसे ही यह फाइनल होगा वह इसकी जानकारी देंगे।

सुरेंद्र से यह पूछने पर कि उन्होंने देसी चूल्हा रेस्टोरेंट ही क्यों चुना। उन्होंने बताया कि दो साल पहले जब उन्होंने अपने बड़े भाई का होटल और रेजार्ट का बिजनेस ज्वाइन किया तब उन्होंने सोचा कि हर राज्य का कुछ मशहूर खाना होता है।लेकिन हमारे राज्य में यह मशहूर खाना कहीं नहीं मिलता।आधे से ज्यादा आउटलेट पर चाइनिज,स्पेनिष,साउथ इंडियन और तरह तरह के फूड आइटम मिलते हैं। लेकिन उत्तराखंड में रहकर उत्तराखंडी खाना मिलना मुश्किल होता है।बस इसी सोच के साथ सुरेंद्र और उनके भाई ने मिलकर देसी चूल्हा को शुरु किया।आज देसी चूल्हा उत्तराखंड राज्य के विशेष खाने को लोगों के बीच लेकर आया है और लोग उसे पसंद कर रहें हैं।

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सुरेंद्र से यह पूछने पर कि आपको अपने काम में बारे में सबसे अच्छी चीज क्या लगती है। इसपर उनका जवाब था कि शायद आने वाले कुछ सालों में पहाड़ी व्यंजन का स्वाद लोगों को भूल जाता और लोग अलग-अलग तरह के खानों की आदत डाल चुके होते। लेकिन मेरे प्रयास और मेहनत से इस समय हर कोई पहाड़ी खाने के बारे में जान रहा है और यह मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है।बस यहीं करके मुझे सबसे ज्यादा खुशी मिलती है।

सुऱेंद्र का कभी ना भूलने वाला वो पल है जब वह देसी चूल्हा के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे।उनके परिवार का सर्पोट उन्हें हमेशा मिला लेकिन उनके माता मिता को कहीं ना कहीं यह डर था कि खाने के मेन्यू में केवल पहाड़ी क्यूजिन रखना कहीं सुरेंद्र को भारी ना पड़े।इसके अलावा उस दौरान कुछ दुकान के मालिकों ने उन्हें यह कहकर दुकान देने से मना कर दिया कि पहाड़ी खाने का कोई भविष्य नहीं है उन्हें चाइनिज या किसी और तरह के खाने का आउटलेट शुरु करना चाहिए।

इन सबके बाद आज सुरेंद्र अपने फूड आउटलेट देसी चूल्हा से बहुत खुश है और इसे और जगहों पर शुरु करने की सोच रखते हैं।देसी चूल्हा ना केवल पहाड़ी लोगों के बीच लोकप्रिय है बल्कि दूसरे राज्य से आए लोग भी इसको उतना ही पसंद करते हैं।बातचीत के दौरान आई विजीटर सीमा ने बताया कि ”मैं लखनऊ की रहने वाली हूं और मुझे तो देसी चूल्हा नाम ही बहुत पसंद आया और जब मैनें यहां का कंडाली का साग,मंडूएं की रोटी,रायता,झोली,चावल खाया तो यह मुझे और ज्यादा पसंद आया। सीमा कहती हैं कि महीने में एक बार यहां पहाड़ी खाना खाने जरुर आती हूं”। ऐसे बहुत से लोग है जिन्हें उत्तराखड की संस्कृति के बारे में कम जानकारी है ऐसे में देसी चूल्हा पहाड़ के खाने के माध्यम से लोगों में अपनी परंपरा को बनाए रखने का एक सराहनीय प्रयास है।

टीम न्यूजपोस्ट की तरफ से सुरेंद्र अंथवाल को उनके आगे आने वाले प्रोजेक्ट के ढेर सारी शुभकामनाएं और देसी चूल्हा के लिए बधाईयां ।