चमोली जिले के काश्तकार रेशम कीट पालन व्यवसाय अपना कर अपनी आर्थिकी को मजबूत कर रहे हैं। इस कारोबार में कम लागत और अच्छा मुनाफा काश्तकारों को हो रहा है। घर बैठे असानी से इस व्यवसाय को किया जा सकता है। जिले में अब किसानों का रुझान रेशम कीट पालन की आरे बढ़ने लगा है।
चमोली जिले के दशोली विकासखंड के बगडवालधार, पाडुली की रहने वाली शांति देवी बताती हैं कि वे वर्ष 2000 से रेशम कीटपालन का कार्य कर रही हैं। शुरुआत में शहतूत के पेड़ और कीटपालन सामग्री के अभाव में कुछ परेशानी जरूर रही। रेशम विभाग के ओर से वर्ष 2012 में क्लस्टर विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत रेशम कीटपालन भवन की अनुदान सहायता और कीटपालन उपकरण जैसे ट्रे, रेंक, फीडिंग स्टेण्ड, चाॅपिंग नाइफ आदि मिलने से काफी फायदा मिला। रेशम कीटपालन के लिए रेशम विभाग ने उनकी निजी नाप भूमि पर तीन सौ शहतूत के पौधे भी लगाए गए। वर्तमान में वसंत और मानसून ऋतु में शांति देवी करीब 50 किलोग्राम रेशम कोया का उत्पादन कर रही हैं, जिससे इनको अच्छी खासी आमदनी मिल रही है।
इसके अलावा शांति देवी ओक टर्सर की नर्सरी उत्पादन एवं राजकीय रेशम फार्म में कर्षण कार्य से भी जुड़ी है। यहां से भी इनको आय अर्जित हो रही है। चमोली जिले में 390 से अधिक किसान रेशम कीटपालन से जुड़ गए है। कोविड काल में नंदकेशरी में 10 लोगों के समूह ने 25 हजार कोकून का उत्पादन कर 50 हजार रुपये से अधिक आय अर्जित की है। साथ ही 45 हजार मणिपुरी बाॅज पौधों की नर्सरी तैयार की।
क्या होता है रेशम: रेशम प्राकृतिक प्रोटीन से बना रेशा है। रेशम के कुछ प्रकार के रेशों से वस्त्र बनाए जाते है। प्रोटीन रेशों में फिब्रोइन होता है। ये रेशे कीड़ों के लार्वा से बनाए जाते हैं। सबसे उत्तम रेशम शहतूत और अर्जुन पेड़ के पत्तों पर पलने वाले कीड़ों के लार्वा से बनाया जाता है।
चमोली जिले में इन स्थानों पर हो रहा रेशम कीटपालन: गोपेश्वर, नंदप्रयाग, सोनला, सियासैंण, गैरसैंण, नंदकेशरी एवं कमेडा में 240 किसान शहतूत रेशम कीटपालन से जुड़े है। जोशीमठ में 150 किसान ओक टर्सर उत्पादन से जुड़े है।
रेशम विभाग से लाभार्थियों को मिलती है ये सुविधा: काश्तकारों को कीटपालन का प्रशिक्षण, तकनीकी जानकारी और रेशम पालन से जुडे उपकरण दिए जाते हैं। कीटपालन हेतु रेशम कीटों के अंडो को उपलब्ध कराया जाता है और उत्पादित कोया के विक्रय की व्यवस्था की जाती है।
रेशम विभाग का लक्ष्य: रेशम विभाग चमोली जनपद में इस वर्ष 81 किसानों की निजी नाप भूमि पर 14 हजार शहतूत पौधरोपण का लक्ष्य रखा है। विगत वर्ष में 61 किसानों की निजी नाप भूमि पर 18 हजार शहतूत पौधे लगाए गए।
औषधीय गुणों से भी भरपूर है शहतूत: शहतूत पेड़ की पत्ती, छाल और फल सभी औषधीय गुणों से भरपूर है। शहतूत के पत्ते रेशम कीड़े के लिए एकमात्र खाद्य स्रोत तो हैं साथ ही सबसे बेस कीमती रेशम उत्पादन का स्रोत भी हैं। शहतूत की छाल का काढ़ा पीने से पेट के कीड़े मर जाते है। शहतूत फल खाने से कैंसर, रक्तचाप नियंत्रण, मधुमेह, लीवर से जुड़ी बीमारियों को दूर करने एवं आंखों की रोशनी और मस्तिष्क को स्वस्थ्य रखने में बेहद फायदेमंद है।