टिहरी में जल्द ही दिखेंगे भांग की ईंटों से बने घर

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भांग
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर ब्लॉक की तर्ज पर टिहरी जिले  में भी जल्द ही औद्योगिक भांग के पौधों से बनी ईंटों के घर और होमस्टे नजर आयेंगे। टीएचडीसी हाइड्रो पावर इंजीनियरिंग कालेज के प्राध्यापकों व छात्रों ने हेंपक्रीट यानि भांग की ईंट बनाने का काम शुरू किया है।
टीएचडीसी हाइड्रो पावर इंजीनियरिंग कालेज की डीन एकेडमिक डा. रमना त्रिपाठी, प्राध्यापक अमित कुमार,  हेंपक्रीट एक्सपर्ट विनोद ओझा के साथ छात्र अदिति बंदुडी, वैभव सैनी और सुधांशु बहुगुणा ने भांग की ईंट बनाकर उसकी टेस्टिंग भी की है।  इस ईंट का वजन 1.2 किलोग्राम और 20 दिन सूखने के बाद ईंट का कंप्रेसिव स्ट्रेंथ 0.4  मेगापास्कल पाया गया। ईंट का अल्टीमेट लोड 9 किलोन्यूटन रहा। इस तकनीकी से कोरोना काल मे पलायन कर वापस आए उत्तराखंड के युवाओं को न केवल सस्ते दामों में ईंटें मिलेगी। बल्कि रोजगार के साधन भी उपलब्ध होंगे।
डॉ. रमना त्रिपाठी ने बताया कि इंडस्ट्रियल भांग की खेती के लिए बेहद कम पानी और समय की जरूरत होती है। इसमें टीएचसी यानी नशे की मात्रा भी 0.3 प्रतिशत होती है। भांग से बनी ईंटें एंटी वैक्टीरियल, भूकंपरोधी, जलरोधी, अग्नि रोधी एवं तापमान सहयोगी होती है। भांग के फाइबर का इस्तेमाल पुरातन काल से किया जा रहा है। अजंता और एलोरा की गुफाओं के साथ ही दौलताबाद के किले मे भी भांग के फाइबर से बने प्लास्टर का इस्तेमाल हुआ है। इसे बनाने के लिए सिर्फ भांग हस्क, चूना और पानी चाहिए होता है। चूने की सबसे अच्छी खासियत होती है, ये वातावरण से कार्बन डाई ऑक्साइड को अवशोषित करके पत्थर में बदल जाता है और समय के साथ और मजबूत होता जाता है। सीमेंट से बनी बिल्डिंग की उम्र ज्यादा से ज्यादा पचास साल तक ही होती है।
भांग की ईंट के फायदे ःडा. रमना का कहना है कि उत्तराखंड में इसकी उपयोगिता इसलिए भी है, क्योंकि प्रदेश भूकंप सेंसिटिव है। विकास के नाम पर यहां बहुत ज्यादा कंस्ट्रक्शन किया जा रहा है, जो एन्वाइरन्मेंट के लिए सही नहीं है। सरकार का सहयोग मिला तो रिसर्च कर भांग में गन्ने और पराली के साथ ही दूसरे और इको फ्रेंडली मैटेरियल मिला के उस पर रिसर्च करना चाहेंगी। इससे हमें इको फ्रेंडली घर मिलेंगे।