देहरादून। लगातार विवादों मेें रहने वाली उत्तराखंड आयुर्वेद यूनिवर्सिटी एक बार फिर विवादोें में आ गई है। इस बार मामला यूएपीएमटी के तहत कॉलेजों की आवंटित होने वाली सीटों को लेकर सवाल खड़े हुए हैं। कॉलेजों पर आरोप है कि वे बिना मान्यता के ही काउंसिलिंग में सीटे आवंटित की जा रही है।
आयुर्वेद विश्वविद्यालय मे अवैध काउंसलिंग हो रही है। अभी किसी भी निजी संस्थान को विश्वविद्यालय से शैक्षणिक सत्र 2017-18 की संबद्धता प्राप्त नही है। जबकि यूजीसी रेगुलेशन 2009 और उत्तराखंड आयुर्वेद यूनिवर्सिटी परिनियमावली 2015 के अनुसार प्रत्येक वर्ष संबद्धता लेना अनिवार्य है। मानकों के तहत सभी संस्थाओं को एक लाख रुपये प्रोसेसिंग फीस जमा कर आवेदन करना होता है। उसके बाद निर्धारित मानकों की जांच कर रिपोर्ट तैयार की जाती है जो विवि मो प्रदान की जाती है। कुलपति के अनुमोदन के बाद मामले को विवि कार्यसमिति में रखा जाता है।
जिसके अनुमोदन के उपरांत संस्थाओं को संबद्धता प्रदान की जाती है। और उन्ही सम्बद्ध संस्थाओं को काउंसलिंग के माध्यम से छात्र आवंटित किए जाते हैं। मौजूदा स्थिति की बात की जाए तो विश्वविद्यालय के अंदर कार्यसमिति तो बहुत दूर, कोई भी समिति नही है। सारे निर्णय मात्र प्रभारी कुलपति और कुलसचिव ही ले रहे हैं। जो कि अवैध है। निजी संस्थान अपने स्तर पर बिना संबद्धता के अपनी कोटे की सीटों पर प्रवेश ले चुके हैं और अब आगामी 24 और 25 सितंबर को सरकारी कोटे में भी छात्रों का आवंटन उन्हें विश्वविद्यालय करने जा रहा है। ऐसे में नियमों के नजरिए से यह तमाम प्रक्रिया अवैध है। हालांकि मामले में विवि के कुलसचिव डा. अनूप कुमार गक्खड़ का कहना है कि कॉलेजों का निरीक्षण शुरू करा दिया गया है। अगले दो दिनों में संस्थानों की जांच पूरी कर ली जाएगी। 23 सितम्बर तक मामले में अंतिम रिपोर्ट लगाते हुए निरीक्षण प्रक्रिया को विराम देने के बाद ही काउंसिलिंग शुरू की जाएगी।