उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों की नियति में है पार्टी की उपेक्षा

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हरीश रावत

देहरादून। उत्तराखंड कांग्रेस के साथ कोई ऐसा मिथ जुड़़ा हुआ है जो भी अध्यक्ष पद पर आता है, उसके विरुद्ध लोग लामबंद होने लगते हैं। अब तक के अध्यक्षों का कार्यकाल ऐसा ही रहा है। जिस समय कांग्रेस सत्ता में थी उस समय पंडित नारायण दत्त तिवारी प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ नेता हरीश रावत पार्टी के मुखिया थे। उस समय भी मुख्यमंत्री और अध्यक्ष का अंतरद्वंद पूरे पांच साल चलता रहा।
यह बात दीगर है कि उस समय हरीश रावत भारी पड़े और उन्होंने सत्ता के मुखिया को संगठन के मुखिया के रूप में लगातार इतना परेशान किया कि एनडी तिवारी जैसे घाघ नेता को हर यही बात कहना पड़ता था कि वह दिल्ली जा रहे हैं और आलाकमान से मिलकर अपने को मुक्त करने की मांग करेंगे। यानि अध्यक्ष और सत्ता के मुखिया का द्वंद्व पूरे पांच साल चलता रहा और तिवारी ने पांच साल काट लिए।
हरीश रावत के बाद संगठन की कमान युवा नेता किशोर उपाध्याय को मिली। किशोर उपाध्याय जो नारायण दत्त तिवारी सरकार में मंत्री थे। विवादों के कारण सत्ता छोड़नी पड़ी और अध्यक्ष बनने के बाद भी उन्होंने तत्कालीन सत्ता प्रमुख हरीश रावत के विरुद्ध संघर्ष छेड़ दिया। जहां सत्ता और संगठन के नेता एक होने चाहिए वहीं दोनों अलग-अलग सुर में राग अलापते रहे जिसके कारण सत्ता और संगठन दोनों को भारी क्षति हुई। सत्ता जाने के बाद संगठन प्रमुख के रूप में किशोर उपाध्याय को भी अलविदा कह दिया गया।
किशोर उपाध्याय के बाद संगठन की कमान चकराता के एकछत्र नेता तथा पांचवीं बार विधायक बने प्रीतम सिंह को सौंपी गई। एक बार फिर प्रीतम सिंह अपनी ही पार्टी के क्षत्रपों के निशाने पर है। उत्तराखंड कांग्रेस आज भी उसी ढर्रे पर चल रही है। जिस ढंग से अध्यक्ष पर कांग्रेस में लगातार नुक्ताचीनी हो रही है उससे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को भी समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर हो क्या रहा है।
कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री रहे पीसीसी चीफ प्रीतम सिंह स्वयं भी कई बार अस्थिर चित्त नेताओं जैसा बयान दे बैठते हैं जहां पार्टी के लोग भाजपा के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कभी मुख्यमंत्री की तारीफ कर रहे हैं तो कभी अपने ही प्रदेश अध्यक्ष को घेरने वाले बयान दे रहे हैं। यह पहली बार नहीं हुआ है। युवा नेता प्रीतम सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद ऐसा कई बार हो चुका है। जो स्थिति किशोर उपाध्याय के कार्यकाल में थी वही एक बार प्रीतम सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद दोहराई जा रही है।
उत्तराखंड की राजनीति के जानकार बताते हैं कि पीसीसी चीफ प्रीतम सिंह का बतौर अध्यक्ष एक साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है लेकिन यह एक साल उनके लिए परेशान का वर्ष रहा है। इसका कारण अपने ही नेताओं द्वारा लगातार टीका टिप्पणी किया जाना है। चाहे पूर्व मुख्यमंत्री एवं संगठन की रगों के जानकार हरीश रावत हों या फिर पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय, इन दोनों के बयानों ने सरकार को घेरे में लिया हो न लिया हो लेकिन अपने प्रदेश अध्यक्ष को ज्यादा हैरत में डाला इस बात से किसी को इनकार नहीं हो सकता।
पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक बार फिर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की तारीफ की तो उनकी इस तारीफ पर प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को जवाब देना पड़ा। उन्होंने साफ कहा कि बतौर विपक्षी दल उनकी नीतियों की आलोचना की जा सकती है, अध्यक्ष के ठीक विपरीत हरीश रावत ने मुख्यमंत्री को प्रमाण पत्र जैसा दे दिया जो अपने आप में जहां सत्ता पक्ष के लिए एक प्रमाण जैसा है वहीं विपक्ष के लिए यह काफी पसोपेश में डालने वाला बयान है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के इन बयानों को देखा जाए तो कुछ दिन पहले ही हरीश रावत ने कहा था कि त्रिवेंद्र रावत तो ठीक काम कर रहे हैं लेकिन उनके मंत्री नहीं। इसके बाद जब लोगों ने प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह से प्रतिक्रिया जाननी चाही तो प्रतिक्रिया देने के बजाय प्रीतम सिंह ने इन संदर्भों से कन्नी काट ली और साफ कहा कि उन्हें रावत के बयान की जानकारी नहीं है। उसके बाद हरीश रावत ने भूमिका कमज़ोर की तो पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने प्रीतम सिंह पर सीधा हमला कर दिया। उन्हें बतौर विपक्षी दल अध्यक्ष प्रीतम सिंह को सरकारी बंगला दिए जाने पर ही सवाल उठा दिया। हालांकि किशोर उपाध्याय ने सरकार के नाम पर सवाल उठाए थे लेकिन लपेटे में प्रीतम सिंह ही आए। लेकिन इस पर पूछे गए सवाल को भी उन्होंने यह कहकर टाल दिया कि पता नहीं किशोर उपाध्याय ने किस संदर्भ में यह बयान दिया है।
प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह पिछले कुछ दिनों से पार्टी के नेताओं के निशाने पर है। हाल ही में पार्टी के अनुसूचित विभाग की बैठक में भी कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग के सह अध्यक्ष जय सिंह गौतम ने तो सीधे-सीधे प्रीतम सिंह पर पार्टी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करने का ही आरोप लगा दिया। इसे संयोग कहें या कांग्रेस अध्यक्षों की भूमिका, जिस पर पार्टी के लोग ही लगातार प्रश्न उठाते रहे हैं। पूर्ववर्ती अध्यक्षों की भांति प्रीतम सिंह भी इसी तरह की व्यवस्था का शिकार हो रहे हैं, शायद कांग्रेस की यही नियति है।