सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान की धारा 370 अस्थायी प्रावधान नहीं है। एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस आरएफ नरीमन की बेंच ने ये बातें कहीं। कोर्ट ने कहा कि सरफेसी के एक मामले में स्पष्ट कहा गया है कि धारा 370 अस्थायी प्रावधान नहीं है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट कुमारी विजयालक्ष्मी झा की एक अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के 11 अप्रैल 2017 के उस फैसले को चुनौती दी गई थी जिसने याचिकाकर्ता की धारा 370 को अस्थायी प्रावधान बताने की मांग को खारिज कर दिया था। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऐसे ही मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं जिन्हें जल्द ही लिस्ट किया जाएगा। इसका जम्मू-कश्मीर सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन और वकील शोएब आलम ने विरोध करते हुए कहा कि दूसरे मामले जो सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित हैं वे धारा 35ए से जुड़े हुए हैं और वे धारा 370 से जुड़े हुए नहीं हैं। इसलिए उन मामलों को धारा 370 से जुड़े मामलों के साथ सुनवाई नहीं की जा सकती है।
विजयालक्ष्मी झा ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया था कि 1957 में संविधान सभा के भंग होने के साथ ही धारा 370 एक अस्थायी प्रावधान हो गई। याचिका में कहा गया था कि धारा 370 को बनाए रखना गलत है क्योंकि संविधान सभा भंग होने के बाद इसके लिए राष्ट्रपति या संसद या केंद्र सरकार से अनुमति नहीं ली गई। ये हमारे संविधान के मूल ढांचे के साथ फर्जीवाड़ा है।