देहरादून, स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा के पुत्र और पूर्व सीएम विजय बहुुगुणा तीन वर्षों से भाजपा में अपने लिए काम की तलाश कर रहे हैं। एक के बाद एक मौके आकर निकल गए, लेकिन बहुगुणा का एडजस्टमेंट नहीं हो पाया है। भाजपा के भीतर इस वक्त सिर्फ विजय बहुगुणा ही वो बड़ा नाम है, जिन्हें उनके कद के अनुरूप काम मिलना अभी बाकी है। हालांकि बहुगुणा से जब जब इस संबंध में बात की जा रही है, वह किसी तरह की नाराजगी जाहिर नहीं कर रहे हैं। उनका यही कहना है कि पार्टी जैसे चाहेगी, उनका उपयोग करेगी।
दरअसल 2016 में उत्तराखंड में चले असाधारण सत्ता संग्राम के सबसे खास किरदारों में से विजय बहुगुणा एक रहे हैं। कांग्रेस सरकार के कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत समेत नौ विधायकों को साथ लेकर हरीश रावत सरकार को हिलाने के अभियान के बहुगुणा सूत्रधार रहे थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में पाटी ने बहुगुणा के कोटे से उनके बेटे सौरभ बहुगुणा को सितारगंज विधानसभा सीट पर टिकट दे दिया था। सौरभ इस क्षेत्र का विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इस दौरान बहुुगुणा को कभी राज्य सभा में भेजने की चर्चा उठी तो कभी लोकसभा चुनाव में टिहरी सीट से टिकट देने की बात हुई, मगर कोई भी बात अंजाम तक नहीं पहुंची। पिछले दिनों भगत सिंह कोश्यारी को जब महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया, तो ये चर्चाएं भी शुरू हुईं कि बहुगुणा को भी किसी राज्य में राज्यपाल बनाया जा सकता है, मगर जल्द ही इस तरह की चर्चाओं की हवा निकल गई।
बहुुगुणा की बहन और इलाहबाद की पूर्व मेयर रीता बहुगुणा को यूपी सरकार में मंत्री बनाया गया है। इसे भी बहुुगुणा के कोटे से जोड़कर देखा जा रहा है, हालांकि रीता बहुगुणा खुद में बड़ा नाम रहा है। इन स्थितियों के बीच, बहुगुणा की योग्यता और उनके कद को देखते हुए उन्हें प्रभावशाली भूमिका देने की उनके समर्थक अपेक्षा कर रहे हैं, लेकिन भाजपा का नेतृत्व इस मामले में पत्ते खोलने के लिए तैयार नहीं है। और तो और बहुगुणा को भाजपा के संगठन में भी कोई पद नहीं दिया गया है। बहुगुणा इस विषय पर बहुत बात करने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन उनके समर्थकों में बेचैनी साफ देखी जा रही है। उनके समर्थकों का कहना है कि कांग्र्रेस से बगावत करने वाले हर नेता का एडजस्टमेंट हो गया है, लेकिन बहुगुणा के बारे में नहीं सोचा जा रहा है। यह स्थिति ठीक नहीं है।