स्विजरलेंड की मशीनों से ऊंन की बढ़ेगी गुणवत्ता

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    पहाड़ों

    पिथौरागढ़- ऊन की गुणवत्ता को बढाने और भेड पालकों को उचीत लाभ मिल सके इसके लिए पहली बार प्रशासन ने नई पहल शुरु की है, जिसके लिेए स्विजरलेंड से खास मशीने मंगाई गयी है, जो ना केवल बहतर तरीके से ऊन निकालेंगी बल्कि ऊन की गुणवत्ता को भी बढायेंगी।

    माइग्रेशन पर घाटियों की ओर आने वाली हिमालयी भेड़ों की ऊन इस बार स्विटजरलैंड से मंगाई गई मशीनों से उतारी जाएगी। इसके लिए दो मशीनें जिले में पहुंच चुकी है। विदेशी मशीन से ऊन की गुणवत्ता बेहतर होगी और भेड़ पालकों को बाजार में इसका अच्छा दाम भी मिलेगा।

    उत्तराखंड के तीन सीमांत जनपद पिथौरागढ़, उत्तरकाशी और चमोली में सदियों से भेड़ पालन होता रहा है। हजारों परिवार भेड़ों का ऊन निकालकर अपनी आजीविका चलाते हैं। इसी ऊन से सीमांत का दन कालीन उद्योग संचालित होता है। तीनों जिलों के भेड़ पालक पिछले कुछ वर्षों तक हाथ से ही ऊन उतारने का काम करते थे, लेकिन इस प्रक्रिया से ऊन की गुणवत्ता प्रभावित हो रही थी और सीमांत का ऊन देश के अन्य हिस्सों में उत्पादित होने ऊन से पिछड़ रहा था। इससे ऊन उत्पादन सिमटने लगा था। इसे देखते हुए पशुपालन विभाग ने दो वर्ष पूर्व प्रयोग के लिए आस्ट्रेलिया से ऊन उतारने की मशीनें मंगाई थी। आकार में बड़ी इन मशीनों को पिथौरागढ़ जिले के बारापट्टा और पांगू भेड़ पालन फार्म में स्थापित किया गया था। भेड़ पालक अपनी भेड़ों का फार्म में लाकर ऊन उतार रहे थे, लेकिन मशीनें एक ही स्थान पर स्थापित होने के कारण दूर-दूर फैले गांवों में रहने वाले भेड़ पालकों का इसका पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा था।

    पशुपालन विभाग ने इस समस्या का हल निकालने के लिए दुनिया भर में मशीन तैयार करने वाले देशों से सम्पर्क किया और स्विटजरलैंड में बनने वाली मशीनों को उपयुक्त पाया। मशीन चयन करने वाली तकनीकी समिति के सदस्य उपमुख्य पशुपालन अधिकारी डॉ.पंकज जोशी ने बताया कि स्विटजरलैंड की मशीनें पूर्व में आस्ट्रेलिया से मंगाई गई मशीनों से आकार में छोटी और सस्ती हैं। मशीनें जिले में पहुंच चुकी हैं। इस बार भेड़ पालक अपने क्षेत्र में ही इन मशीनों से ऊन निकाल सकेंगे।