कोटद्वार/पौड़ी, आमतौर पर घरों के आसपास अपना घर बना कर घर-आंगन में फुदकने वाली गौरैया मनुष्य के बदलते रहन-सहन और शहरीकरण के कारण विलुप्ति के कगार पर है। गौरैया बचाने के लिए बातें भले ही बड़ी-बड़ी की जाती हो मगर जमीनी हकीकत बिल्कुल उलट है मगर इन दावों से हटकर एक शिक्षक ऐसे हैं जो पिछले दो दशकों से गौरैया बचाने का भगीरथ प्रयास कर अपने आसपास के क्षेत्रों में मिसाल कायम कर रहे हैं।
कोटद्वार के नंदपुर गांव में रहने वाले शिक्षक दिनेश चंद्र कुकरेती जिन्होंने गौरैया बचाने की शुरुआत 1997 में अपने घर में 11सुराख कर के किया, और आज समाज में शिक्षा का उजाला फैलाने के साथ साथ गौरैया का जीवन बचाने में तन, मन, धन से जुटे हुए हैं। दिनेश ने जहां अपने छोटे से आवास को गौरैया का निवास बना दिया है, वहीं कोटद्वार व आसपास के क्षेत्रों में गौरैया संरक्षण के लिए व्यापक मुहिम छेड़े हुए हैं।
स्वयं के खर्च से अब तक प्लाईवुड से लगभग 6000 गौरैया हाउस बनाकर लोगों को निशुल्क बांट चुके हैं। शिक्षक दिनेश चंद्र का कहना है कि, “खासकर मैदानी क्षेत्रों से गौरैया का विलुप्त होने का मुख्य कारण बढ़ता शहरीकरण और खेतों बाग-बगीचों में बढ़ते कीटनाशकों के प्रयोग के चलते आज गौरैया के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। अगर हमने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो वह दिन दूर नहीं जब गौरैया मैदानी भागो से गायब हो जाएगी”