देहरादून। स्थानांतरण नीति पर चर्चा को बुलाई गई बैठक में एक बार फिर बेनतीजा रही। सभी शिक्षक संगठनों ने नीति को मानने से साफ इन्कार कर दिया है। वे ठोस स्थानांतरण एक्ट की मांग पर अडिग हैं। संगठन के पदाधिकारियों ने कहा कि राज्य गठन से अब तक कई बार नीतियां बनाई जा चुकी हैं लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षों से तैनात शिक्षकों के साथ न्याय नहीं हो पाया। उन्होंने कहा कि ठोस स्थानांतरण कानून से ही शिक्षकों के साथ न्याय होगा।
शनिवार को ननूरखेड़ा स्थित शिक्षा निदेशालय में शिक्षा विभाग की ओर से बुलाई गई बैठक की अध्यक्षता कर रहे अपर निदेशक प्रारंभिक शिक्षा महावीर सिंह बिष्ट ने शिक्षक संगठनों के पदाधिकारियों से स्थानांतरण नीति के प्रस्ताव के संबंध में आवश्यक सुझाव मांगे। प्रारंभिक, जूनियर व राजकीय शिक्षक संगठनों के पदाधिकारियों ने सुझाव देने से मना कर दिया और सीधे स्थानांतरण नीति के विरोध में उतर आए। पदाधिकारियों ने एक सुर में कहा कि शिक्षकों के साथ न्याय करने के लिए स्थानानंतरण कानून आवश्यक है। कहा कि ठोस कानून न होने के कारण हजारों शिक्षक अपने परिवार से दूर दुर्गम क्षेत्रों में वर्षों से तैनात रहते हैं। जबकि रसूख वाले शिक्षक हमेशा मैदानी क्षेत्रों में आराम फरमाते हैं। स्थानांतरण प्रक्रिया में मजबूत एक्ट से ही पारदर्शिता आएगी।
प्राथमिक शिक्षक संगठन के महामंत्री दिग्विजय चौहान ने कहा कि प्राथमिक शिक्षक संगठन स्थानांतरण नीति के पक्ष में नहीं है। मजबूत एक्ट शिक्षकों के हित में हैं। संगठन मांग करता है कि जब तक कानून नहीं बनता, तब तक तत्कालीन व्यवस्था में आवश्यक संशोधन किए जाएं।
वहीं, जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ की उपाध्यक्ष कल्पना बिष्ट ने कहा कि संगठन स्थानांतरण नीति कतई बर्दाश्त नहीं करेगा। विभागीय अधिकारियों से ठोस एक्ट की मांग की गई है। क्योंकि अभी तक कई बार नीति बन चुकी हैं, लेकिन शिक्षकों के स्थानांतरण में भेदभाव ही होता रहा है।