(रुद्रप्रयाग) केदारनाथ में पीएम मोदी की मशहूर मौन गुफा में पीएम के बाद जाने वाले दूसरे शक्स हैं कृष्ण कुङयाल। करीब 12 हजार फीट की ऊचांई पर केदारनाथ मंदिर से 1 किमी दूर मंदाकिनी नदी के पार मौजूद ये गुफा दशकों से लोगों की नज़रों से दूर थी। पहाड़ों में ध्यान लगाने को प्रेरित करने के पीएम के सुझाव ने इस गुफा को अचानक ही देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सुर्खियों में ला दिया।
इस मौन गुफा के जीर्णोद्धार का काम कर्नल अजय कोठियाल और उनकी टीम के अगुवाई में हुआ। इस काम में आने वाले खर्च को मशहूर उद्योगपति सज्जन जिंदल की कंपनी जिंदल स्टील वर्कस ने वहन किया।
यहां आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिये इस गुफा में बिजली, शौचालय, नहाने की जगह, बैठने की जगह, नहाने के लिये गर्म पानी और सिंगल बेड का इंतजाम किया गया है। इसके साथ ही खाने पीने और अटेंडेंट की भी व्यवस्था है। किसी आपातकालीन स्थिति में आप सैटेलाइट फोन के ज़रिये जीमएमवीएन केदारनाथ से संपर्क भी कर सकते हैं।
ठंड से प्राकृतिक रूप से बचाने के लिये इस गुफा के आसपास की तीन फीट ऊंची दीवार का निर्माण इसी इलाके में पाये जाने वाले पत्थरों से किया गया है। गुफा में एक छोटी खिड़की भी है जिसे खोलने पर सीधे बाबा केदार के मंदिर के दर्शन होते हैं।
इस गुफा में आने वाले लोग गढ़वाल मंडल विकास निगम से यहां की बुकिंग करानी पड़ेगी। निगम के अधिकारियों के अनुसार फिलहाल इस गुफा में आने वालों के उत्साह का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस समय ओवरबुकिंग चल रही है। इस गुफा में दिन बिताने के लिये आपको 990 रुपये खर्च करने होंगे। वहीं अगर आप रात्रि विश्राम भी करना चाहते हैं तो आपको 1500 रुपये खर्च करने होंगे। कृष्ण के मुताबिक ये केदारनाथ के आसपास किसी भी रहने की व्यवस्था से सस्ता है।
इस गुफा की दीवारों पर पेंटिंग्स बनाते और बांसुरी पर मीठी धुनें बजाते हुए कृष्ण कहते हैं कि, “ये जगह ध्यान, कला, संगीत में डूबने के लिये बिल्कुल मुफीद है। ये एक पौराणिक जगह हे जिसमें आज के समय के अनुसार कुछ बदलाव किए गये हैं।” कृष्ण और उनकी टीम केदारनाथ त्रासदी में जर्जर हो चुके भवनों को पहाड़ी शैली में जीर्णोद्धार में लगी है।कृष्ण की एक छोटी सी पहल और लगन पहाड़ी प्राचीन भवन शैली को एक नया जीवन और कारीगरों को रोज़गार के अवसर देने में अहम भूमिका निभा रही है। पहले दून स्कूल देहरादून और फिर आईआईटी रुड़की से आर्किटेक्चर में उच्च प्रशिक्षण प्राप्त कर कृष्ण ने तीन साल दिल्ली में काम किया, फिर अपनी मां का सहारा बनने के लिए वापस उत्तरकाशी अपनी जन्मभूमि आ गए और यहां के होकर रह गए।
कृष्ण का कहना है कि, “इस जगह में कला के लिहाज से अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है, ये काम आने वाले समय में भी जारी रहेगा।” तो अगर आप देश के प्रधानमंत्री के तरह सुकुन और ध्यान के कुछ पल बाबा केदार के चरणों में गुजारना चाहते हैं तो आपको रुख करना है केदारनाथ की मौन गुफा का।
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