चमोली का फ्यूला नारायण मंदिर जहां महिला पुजारी भी करती हैं अनुष्ठान

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गोपेश्वर। चमोली जिले के उर्गम घाटी में फ्यूला नारायण एक ऐसा मंदिर है जहां पर पुरूष पुजारी के साथ महिला पुजारी का भी विधान है। यहां पर महिला पुजारी भी वही सब अनुष्ठान करती हैं जो पुरूष पुजारी करता है। इस वर्ष मंदिर में पुरूष पुजारी के साथ महिला पुजारी का दायित्व पार्वती कंडवाल को सौंपा गया है, जिसे फ्यूल्यांण भी कहते हैं। फ्यूला नारायण मंदिर के कपाट बुधवार 17 जुलाई को प्रातः 11 बजे पूजा विधान के साथ आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जायेंगे।
समुंद्र तल से 10 हजार फीट की उंचाई पर स्थित फ्यूला नारायण मंदिर पंच केदारों में एक केदार कल्पनाथ मंदिर के शीर्ष पर स्थित है। फ्यूला नारायण मंदिर में हर वर्ष क्षेत्र के भेटा, भर्की, पिलखी, ग्वाणा व अरोसी गांव के लोग बारी-बारी से मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं । इस वर्ष इसका दायित्व पुरूष पुजारी के रूप में भेटा गांव के पूरण सिंह मंमगाई व महिला पुजारी का दायित्व पार्वती कंड़वाल को सौंपा गया है। भर्की मेला समिति से जुड़े पुजारी मंगल सिंह को इस वर्ष मंदिर का कपाट खोलने का कार्य सौंपा गया है | मंदिर का  कपाट बुधवार 17 जुलाई को प्रातः 11 बजे विधि विधान के साथ खोल दिया जायेगा । कपाट खुलने से पूर्व साढे नौ बजे नव नियुक्त पुजारी पूरण सिंह मंमगाई को चिमट्टा व घंटी सौंपी जायेगी तथा महिला पुजारी फ्यूल्यांण पार्वती कंडवाल को फूलों की कंडी व मक्खन रखने वाला पात्र (वर्तन) दिया जायेगा । मंदिर में भंडारे का भी आयोजन किया जाता है।
भूमियाल (क्षेत्रपाल) के प्रतिनिधि लक्ष्मण सिंह नेगी ने बताया कि फ्यूला नारायण मंदिर में जो भी पुजारी नियुक्त होता है उसके परिवार में जितनी भी दूध देने वाली गाय होती है, उन सभी को कपाट खुलने के दिन मंदिर में ले जाया जाता है | साथ ही पुजारी गांव के प्रत्येक परिवार चार किलो आटा व एक किलो चावल देता है जिससे यहां पर भंडारे का आयोजन किया जाता है। कपाट खुलने के अवसर पर नंदा देवी के पुजारी मंगल सिंह, क्षेत्रपाल के प्रतिनिधि लक्ष्मण सिंह नेगी, मेला समिति के अध्यक्ष हर्षवर्धन फस्र्वाण, रामचंद्र कंडवाल, उजागर सिंह बिष्ट, मुकेश कंडवाल, देवेंद्र सिंह चैहान आदि मौजूद रहेंगे। पुरानी पंरपरा के अनुसार फ्यूला नारायण मंदिर से ही बदरीनाथ जाने का पैदल मार्ग था। यहां ध्यानबदरी में पहले एक घराट (पन चक्की) हुआ करती थी जहां से बदरीनाथ के लिए गेहूं की पीस कर बकरियों पर लादकर भेजा जाता था। लेकिन जब से सड़क मार्ग बना है यह प्रक्रिया लगभग समाप्त हो गई है।