उतराखंड का गौरव, तीन को मिला पदम सम्मान

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देहरादून, उत्तराखंड को देश के 70वें गणतंत्र दिवस पर एक बार फिर गौरव का अहसास हुआ। राज्य के तीन लोगों को अलग-अलग क्षेत्र में पदम सम्मान से नवाजे जाने की घोषणा की गई गया। विश्वविख्यात पर्वतारोही बछेंद्री पाल को जहां पद्म विभूषण से नवाजा जाएगा, वहीं प्रसिद्ध लोक गायक प्रीतम भरतवाण और विख्यात छायाकार (फोटोग्राफर ) अनूप शाह को पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे। यह पहला मौका है जब उत्तराखंड से तीन विभूतियों को पदम सम्मान मिला है।

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्य के तीन लोगों को पदम सम्मान दिए जाने पर केंद्र सरकार और जूरी के सदस्यों का आभार जताया और तीनों विभूतियों को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि यह राज्य का गौरव है कि छोटे से राज्य से तीन-तीन लोगों इस सम्मान के लिए चुना गया। उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी ने भी उत्तराखंड की तीन विभूतियों को पद्म पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किए जाने पर भारत सरकार और पद्म पुरस्कारों की जूरी का आभार जताया। उन्होंने पुरस्कृत विभूतियों को शुभकामनाएं प्रेषित की हैं। बलूनी ने कहा कि उत्तराखंड जैसे छोटे से राज्य से तीन विभूतियों को एक साथ सम्मानित किया जाना उत्तराखंड की मेधा और मिट्टी का सम्मान है।

क्या कहती हैं ये विभूतियां
लोक गायक प्रीतम भरतवाण ने पदमश्री से नवाजे जाने पर कहा कि यह सम्मान उत्तराखंड के लोक वाद्य, लोक कलाकारों और लोक संस्कृति का सम्मान है। उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार ने लोक कलाओं और संस्कृति के लिए अहम कार्य किए हैं। उन्होंने इस सम्मान के लिए सरकार का आभार जताया और इसे लोक गायकों और लोक कलाकारों से लिए प्रेरणा कहा।

पर्वतारोही बछेंद्री पाल ने पदम भूषण सम्मान को महिला सशक्तिकरण का सम्मान बताया है। पदम भूषण सम्मान से नवाजे जाने पर पर्वतारोही बछेंद्री पाल ने कहा है कि वह पहले की तरह ही महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए समर्पित रहेंगी। इससे पहले पदम श्री आदि कई सम्मान से नवाजी जा चुकीं बछेंद्री पाल अब तक साढे चार हजार लड़कियों को प्रशिक्षित कर चुकी हैं।

जाने माने फोटोग्राफर और पर्वतारोही अनूप साह ने खुशी जाहिर की और अपना पुरस्कार हिमालय क्षेत्र में रहने वाले लोगों को समर्पित किया है। नैनीताल निवासी अनूप साह ने बताया कि ये उनके लिए सुखद अनुभव से कम नहीं है। उन्होंने कहा कि उन्होंने इसके लिए कोई प्रयास नहीं किए थे और उनको एकाएक इसकी जानकारी मिलने पर आश्चर्य हुआ। अनूप साह ने प्रधानमंत्री को भी उनकी कला पहचानने और पुरस्कृत करने के लिए धन्यवाद दिया है।

बछेंद्री पाल-पर्वतारोही
बछेंद्री पाल माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय महिला हैं। वे एवरेस्ट की ऊंचाई को छूने वाली दुनिया की 5वीं महिला पर्वतारोही हैं। वर्तमान में वे इस्पात कंपनी टाटा स्टील में कार्यरत हैं, जहां वह चुने हुए लोगो को रोमांचक अभियानों का प्रशिक्षण देती हैं। बछेंद्री पाल का जन्म उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले के एक गांव नकुरी में 24 मई, 1954 को हुआ। खेतिहर परिवार में जन्मी बछेंद्री ने बीएड तक की पढ़ाई पूरी की। मेधावी और प्रतिभाशाली होने के बावजूद उन्हें कोई अच्छा रोज़गार नहीं मिला, जो मिला वह अस्थायी, जूनियर स्तर का था और वेतन भी बहुत कम था। इस से बछेंद्री को निराशा हुई और उन्होंने नौकरी करने के बजाय ‘नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग’ कोर्स के लिए आवेदन कर दिया। यहां से बछेंद्री के जीवन को नई राह मिली। 1982 में एडवांस कैम्प के तौर पर उन्होंने गंगोत्री (6,672 मीटर) और रूदुगैरा (5,819) की चढ़ाई को पूरा किया। इस कैम्प में बछेंद्री को ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह ने बतौर इंस्ट्रक्टर पहली नौकरी दी। हालांकि, पेशेवर पर्वतारोही का पेशा अपनाने की वजह से उन्हे परिवार और रिश्तेदारों के विरोध का सामना भी करना पड़ा। हिमालय के गलियारे में भूटान, नेपाल, लेह और सियाचिन ग्लेशियर से होते हुए काराकोरम पर्वत शृंखला पर समाप्त होने वाला 4,000 किमी लंबा अभियान उनके द्वारा पूरा किया गया, जिसे इस दुर्गम क्षेत्र में प्रथम महिला अभियान का प्रयास कहा जाता है।

प्रीतम भरतवाण- लोकगायक व जागर सम्राट
उत्तराखंड के जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण को न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि विदेशों में भी लोग जागर सम्राट के नाम से जानते हैं। उन्हें घर में प्रीति नाम से बुलाया जाता है और 6 साल से ही थाली बजाकर गीत गाने की कोशिश करते थे। वह न सिर्फ जागर, लोकगीत, पवांडा और घुयांल गाते हैं, बल्कि ढोल, दमाऊ, हुड़का और डौंर थकुली (उत्तराखंडी वाद्य यन्त्र) बजाने में भी महारत हासिल है।

‌प्रीतम देहरादून के रायपुर ब्लॉक में सिला गांव में पैदा हुए। अपने बचपन के बारे में खुद वह कहते हैं कि औजी परिवार में पैदा होने के कारण संगीत उन्हें विरासत में मिला, क्योंकि उनके घर में ढोल से लेकर धौंसी और थाली सब रहती थी, जिससे उनके पापा और दादाजी घर में गाया करते थे। सयुक्त परिवार में पले बढ़े प्रीतम बचपन में अपने पिताजी और चाची के साथ गांव में किसी खास पर्व या फिर खास दिनों में जागर लगाने जाया करते थे और वहीं उनकी ट्रेनिंग भी हुई। ‌प्रीतम को एक बार स्कूल में रामी बौराणी के नाटक में बाल आवाज देने का मौका मिला था। उस समय वह तीसरी क्लास में पढ़ते थे। फिर मसूरी में उन्होंने एक नृत्य-नाटक में डांस किया उसके बाद प्रीतम स्कूल में प्रिंसिपल की नजरों में आ गए। उसके बाद एक बार स्कूल के कुछ बच्चों के साथ प्रीतम ने प्रिसिंपल के ऑफिस में जाकर सिंगिंग ऑडीशन दिया जिसमें वह पास हो गए और फिर स्कूल के हर प्रोगाम में उन्हें गाने का मौका मिलने लगा। हालांकि लोगों के सामने पहली बार उन्होंने 12 साल की उम्र में जागर यानी पवांडा गाया जिसमें गाने के लिए उन्हें उनके जीजाजी और चाचा ने कहा था। ‌प्रीतम को पहली बार तौंसा बौ से लोकप्रियता मिली। 1995 में यह कैसेट निकली जिसे रामा कैसेट ने रिकॉर्ड किया था। यही नहीं सबसे ज्यादा पॉपुलैरिटी उन्हें “सुरुली मेरू जिया लगीगो” से मिली। पैंछि माया, सुबेर, रौंस, तुम्हारी खुद, बांद अमरावती जैसी सुपरहिट एलबम देने वाले प्रितम अब तक 50 से अधिक एल्बम व 350 से अधिक गीत गा चुके हैं। अब पूरे उत्तराखंड मंव उनके गानों के बिना संगीत अधूरा रहता है। ‌1988 में प्रीतम ने ऑल इंडिया रेडियो के जरिये लोगों को अपना टैलेंट दिखाया। प्रीतम भरत्वाण को उनकी आवाज और टैलेंट के लिए कई अवॉर्ड भी मिल चुके हैं और अक्सर वह विदेशों में भी अपनी इसी प्रतिभा के लिए बुलाए जाते हैं। अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, जर्मनी, मस्कट, ओमान, दुबई समेत कई अन्य स्थानों पर वह मंचों पर लाइव प्रस्तुति दे चुके हैं। पूरे उत्तराखंड को उन पर गर्व है।

अनूप शाह, छायाकार-पर्वतारोही
प्रतिष्ठित पद्मश्री सम्मान के लिए चयनित जाने माने फोटोग्राफर अनूप साह का पूरा जीवन फोटोग्राफी, पर्वतारोहण, पर्यावरण संरक्षण को समर्पित रहा। उनके 3500 से ज्यादा फोटोग्राफ राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में चयनित हुए। करीब 350 फोटो पुरस्कृत हुए। साह छह दुर्गम चोटियों पर सफल आरोहण कर चुके हैं। वह कई ट्रैकिंग अभियानों में शामिल रह चुके हैं। 1970 में 6611 मीटर ऊंची दुर्गम अविजित चोटी नंदाखाट को सर्वप्रथम अनूप ने ही फतह किया था। इसके अलावा ट्रेल पास को भी 53 वर्षों के अंतराल के बाद 2004 में साह ने फतह किया था। साह अत्यंत प्रतिष्ठित आईएमएफ के स्थायी सदस्य और इंडियन इंटरनेशनल फोटोग्राफिक काउंसिल के उपाध्यक्ष भी हैं। इंडो-जापान नंदा देवी संयुक्त अभियान में भी वे शामिल रहे। वह अस्कोट-आराकोट 1990 और 2002 में कैलाश मानसरोवर यात्रा भी कर चुके हैं।

बेहद सौम्य, शांतचित्त साह का जन्म 1949 में आठ अगस्त को नैनीताल में हुआ था। शिक्षा-दीक्षा भी यहीं हुई। वह उत्तराखंड हिमालय, यहां की वनस्पतियों, जैव विविधता के सही अर्थ में इनसाइक्लोपीडिया हैं। साह समय समय पर उत्तराखंड के बुग्यालों, घाटियों, वनस्पतियों, जड़ी-बूटियों, संरक्षित जीव-जंतुओं के अवैध शिकार के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ चुके हैं। उन्होंने अपने समाजसेवी पिता स्व. चंद्रलाल साह ठुलघरिया के साथ नैनीताल माउंटेनियरिंग क्लब, 1985 में फ्लोरिस्ट लीग की स्थापना में योगदान दिया। साह के खींचे चित्रों पर राजभवन की कॉफी टेबल बुक सहित राज्य के प्रमुख संस्थानों के दर्जनों कैलेंडर भी बन चुके हैं। पद्मश्री शेखर पाठक के साथ उनकी पुस्तक कुमाऊं हिमालय टेंपटेशन भी प्रकाशित हुई है।

अनूप साह ने 1964 में अपने पिता द्वारा दिए गए आगफा बॉक्स कैमरे से शौकिया तौर पर फोटोग्राफी शुरू की जो बाद में उनके पर्वतारोहण, जीव-जंतुओं, वनस्पतियों की जानकारी के प्रति शौक के साथ जुड़ कर तेजी से परवान चढ़ी। साह के चित्रों में भी पर्वत शिखरों, प्राकृतिक दृश्यों, जीवों, वनस्पतियों, लोक परंपराओं की अधिकता है। साह नैनीताल के सबसे पुराने विद्यालय सीआरएसटी के प्रबंधक भी हैं। उनके पुत्र प्रांजल भी बेहतरीन फोटोग्राफर हैं। उनको आईआईपीसी ने भारत के सर्वश्रेष्ठ फोटोग्राफर का पदक दिया है।