समृद्ध वन्य जीवों के लिए बड़ा खतरा हैं शिकारी, रेल और बिजली की लाइनें

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देहरादून। उत्तराखंड वन्य जीवों के मामले में काफी समृद्ध है। वन्य जीव अलग अलग कारणों से बलि वेदी पर चढ़ रहे हैं। कभी शिकारी, कभी बिजली की लाइनें तो कभी रेलवे, इन वन्य पशुओं को मौत के घाट उतार रहे हैं।
नौ नवम्बर, 2000 को अस्तित्व में आये उत्तराखंड का कुल क्षेत्रफल 53 हजार 483 वर्ग किलोमीटर है। यहां वन्य जीव विहारों, संरक्षण विहार एवं राष्ट्रीय उद्यानों की अच्छी खासी संख्या है। छह राष्ट्रीय पार्क (नेशनल पार्क), छह वन्य जीव विहार (वाइल्ड लाइफ सेंचुरी) हैं। प्रथम वन्य जीव संरक्षण केंद्र 1935 में देहरादून जनपद का मोतीचूर वन्य जीव विहार बना था, जो 1983 में राजाजी राष्ट्रीय पार्क में शामिल हो गया। इसी प्रकार जिम कार्बेट राष्ट्रीय पार्क की स्थापना 1936 में की गई थी। यह नैनीताल और पौड़ी गढ़वाल जनपदों में स्थित है। एक नवम्बर, 1973 को भारत का पहला बाघ संरक्षण पार्क बना, जिसमें 570 पक्षी प्रजातियां, 25 सरीसृप प्रजातियां तथा 75 स्तनधारी जीव पाए गये। गोविंद राष्ट्रीय उद्यान 1980 में उत्तराकाशी में बनाया गया। नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क चमोली जनपद में 1982 में अस्तित्व में आया। राजाजी राष्ट्रीय पार्क की स्थापना देहरादून, हरिद्वार और पौड़ी जनपदों में की गई। उत्तरकाशी में गंगोत्री राष्ट्रीय पार्क की स्थापना की गई जहां हिम तेंदुओं, हिमालयी भालू, कस्तूरी मृग, भरल तथा पक्षियों की प्रजातियां है।
उत्तराखंड के वन्य जीव विहारों में गोविंद पशु विहार, राष्ट्रीय उद्यान, केदारनाथ वन्य जीव विहार, अस्कोट कस्तूरी मृग विहार, सोना नादी वन्य जीव विहार, विन्सर वन्य जीव विहार, विनोग माउंटेन क्लेव वन्य जीव विहार के नाम शामिल है। उत्तराखंड में वन विभाग में हाथियों की मौत का यह सिलसिला 1980 से चल रहा है। 1987 से 2016 तक 181 हाथियों ने रेलवे के कारण अपने प्राण गंवाए। हरिद्वार से देहरादून रेल लाइन पर भी 24 से ज्यादा हाथियों ने अपने प्राण गंवाए। आंकड़े बताते हैं कि 1992 में एक के बाद एक पांच हाथियों की मौत हुई थी। इसी प्रकार 1994 में दो हाथियों ने ट्रेन की टक्कर से अपनी जान गंवाई। 1998 में एक साथ 6 हाथी मारे गए थे। 2000 से 2001 के बीच 4 हाथियों ने रेल की चपेट में आकर अपना दम तोड़ा। इसी प्रकार 2002 और 2003 में दो-दो हाथियों ने जान गंवाई। 2009 और 2017 में एक-एक हाथी रेल से कटे। अप्रैल 2019 में दो हाथियों ने अपनी जान गंवाई है। यही स्थिति अन्य वन्य जीवों की भी है।
वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी सनातन सोनकर का मानना है कि यह घटनाएं सबकी जानकारी में होती हैं। ऐसे में इसमें छिपाने जैसा कुछ नहीं है। वन्य जीव बहुल क्षेत्रों में वनों के बीच से गुजरती हाईटेंशन लाइनें, रेलव ट्रैक तथा शिकारी तीनों इन वन्य जीवों को निरंतर क्षति पहुंचा रहे हैं। उच्चतम न्यायालय ने हाथियों की मौतों को देखते हुए रेलवे को साफ निर्देश दिया है कि वह 50 किलोमीटर प्रति घंटे से कम की गति पर रेल चलाये। वन विभाग के अधिकारी सनातन सोनकर मानते हैं कि ट्रेन की गति धीमी रखने के लिये रेलवे से आग्रह किया गया है।