राजनीति: पहली चुनावी परीक्षा में तीरथ-कौशिक कामयाब

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पहली चुनावी परीक्षा में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक अच्छे नंबरों से पास हो गए हैं। विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल माने जा रहे सल्ट उपचुनाव में कांग्रेस की चुनौती भाजपा के सामने टिक नहीं पाई। भाजपा सरकार और संगठन का मुखिया बदलने के बाद सभी की नजर इस बात पर थी कि सल्ट के चुनावी समर का नतीजा क्या निकलता है। कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत जी-जान लगाकर भी कांग्रेस की नैया चुनाव में पार नहीं लगा पाए हैं।
-सल्ट उपचुनाव जीतकर भाजपा ने कायम की मनोवैज्ञानिक बढ़त
-सहानुभूति लहर हर उपचुनाव में आई है सत्तासीन दल के काम
किसी के निधन की वजह से खाली होने वाली विधानसभा सीट और फिर उपचुनाव केे नतीजे के संबंध में कुछ स्थापित बातों को ही सल्ट ने पुख्ता किया है। मसलन, सहानुभूति लहर हर बार कामयाब साबित हुई है। इसके अलावा, सत्तासीन राजनीतिक दल को उपचुनाव में जनता ने सिर आंखों पर बैठाया है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीतने के बाद भाजपा के सामने अभी तक तीन बार ऐसे मौके आए, जबकि उसे अपने किसी विधायक की मौत के बाद उपचुनाव में जाना पड़ा। भाजपा ने सभी उपचुनावों में अपने दिवंगत विधायक के परिजन को ही मुकाबले में उतारा और जीत दिलवाई।
सबसे पहले थराली उपचुनाव हुआ, जिसमें दिवंगत विधायक मगन लाल की पत्नी मुन्नी लाल शाह को जीत नसीब हुई। इसके बाद पिथौरागढ़ का उपचुनाव हुआ, जिसमें दिवंगत प्रकाश पंत की पत्नी चंद्रा पंत ने विजय हासिल की। सल्ट उपचुनाव की स्थिति भी सुरेंद्र सिंह जीना के दिवंगत होने की वजह से पेश आई, जिसमें अब भाजपा उम्मीदवार बतौर उनके भाई महेश जीना को जीत हासिल हुुई है।
भाजपा विधायक गोपाल सिंह रावत की मौत के बाद गंगोत्री सीट भी खाली हो गई है, हालांकि वहां पर उपचुनाव को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। इन स्थितियों के बीच कांग्रेस के लिए सल्ट उपचुनाव के नतीजे मायूस करने वाले साबित हुए हैं। खासतौर पर कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत के लिए यह नतीजा झटके देने वाला है, क्योंकि पार्टी प्रत्याशी गंगा पंचोली को उन्होंने ही टिकट दिलवाया था। महिला उम्मीदवार को मुकाबले में खड़ा करके कांग्रेस सहानुभूति लहर की काट तलाश रही थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई। वैसे, भाजपा से अलग हटकर कांग्रेस की बात करें, तो हरीश रावत सरकार के जमाने में भगवानपुर सीट पर भी यही स्थिति बनी थी। तब कांग्रेस सरकार में मंत्री सुरेंद्र राकेश के निधन के बाद पार्टी ने उनकी पत्नी ममता राकेश को उम्मीदवार बनाया था। ममता राकेश निर्वाचित हुई थीं। ममता राकेश की जीत ने भी तब इस बात को ही पुख्ता किया था कि इस तरह के उपचुनाव में दिवंगत विधायक के परिजन को टिकट देने पर जीत सुनिश्चित होती है। इसके अलावा सत्तासीन दल ऐसे उपचुनाव में कभी हारता नहीं है।