विश्व का दूसरा सबसे बड़ा प्रस्तावित-पंचेश्वर बांध फिर से विवादों में

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भारत-नेपाल सीमा से सटे चम्पवात-पिथौरागढ़ क्षेत्र में स्थित महाकाली और सरयू नदी में प्रस्तावित दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बनने वाला पंचेश्वर बांध एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गया हैं। बांध के विरोध में देहरादून में उत्तराखंड चेतना आंदोलन से जुड़े लोगों ने आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र और उत्तराखंड सरकार राज्य में जंगल-जमीन पर आम लोगों के क़ानूनी अधिकारों पर आपराधिक तरीके से उल्लंघन कर रही है। पंचेश्वर बांध से प्रभावित होने वाले स्थानीय ग्रामीणों  का आरोप है कि विकास के नाम पर बड़ी कंपनियों को अधिकारीयों द्वारा फायदा पहुंचा कर इस  बांध के जरिये एक बड़े घोटाले साजिश रची जा रही है।

पंचेश्वर बांध से प्रभावित होने वाले पिथौरागढ़ क्षेत्र वासियों का आरोप भी है कि इस बांध को बनाने के लिए वन अधिकार कानून 2006 का उल्लंघन कर प्रभावित ग्राम सभाओं से जबरन एनओसी लेने की प्रकिया चल रही है, जो गैरकानूनी होने के साथ, एक अपराध भी  है।  ग्रामीणों का कहना है कि वन अधिकार कानून 2006 के तहत ग्राम सभा की अनुमति के बिना न तो कोई विकास कार्य किया जा सकता है और ना ही सरकार किसी प्रकार का हस्तक्षेप कर गांव समाज की भूमि में कर सकती है।

जानकारी के मुताबिक 1996 में भारत-नेपाल सरकारों के बीच महाकाली जल विकास सन्धि हुई थी। केंद्र सरकार की पहल के बाद भारत और नेपाल के साझा प्रोजेक्ट के तहत उत्तराखंड के पिथौरागढ़, अल्मोड़ा व चम्पावत के बीच से जाने वाली सरयू और नेपाल से आने वाली महाकाली नदी पर 5040 मेगावॉट बिजली बनाने वाली परियोजना प्रस्तावित है। स्थानीय जनता के अनुसार इस परियोजना के बनने से 122 गाँव के लगभग 129 हजार परिवार पूरी तरह से डूब क्षेत्र में आयेंगे। साथ प्रभावितों में से 67 प्रतिशत उत्तराखंड और 33 प्रतिशत नेपाली प्रभावित होंगे। इससे पर्यावरण में भी खासा असर पड़ेगा जिससे वन प्रजातियों को नुकसान होगा। जानकारी के अनुसार प्रस्तावित पंचेश्वर बांध टिहरी बांध से पांच गुना लागत से बनेगा जिसमे 134 वर्ग हैक्टीयर भूमि डूब क्षेत्र और साथ ही 5 हजार हैक्टीयर प्रभावित होगी, पंचेश्वर बांध की अनुमानित लागत  34 हजार 108 करोड़ आंकी  गई है, जिसकी ऊंचाई  315 मीटर  है जिसे बनने में लगभग 8 साल का समय लगेगा।

वही जानकारी के अनुसार  पंचेश्वर बांध बनने से भारत की 2. 59 लाख हैक्टीयर भूमि सिंचाई  की सुविधा मिलेगी, इसी के साथ ही नेपाल को भी इस परियोजना से 1. 70 लाख  हैक्टीयर  भूमि को  सिंचाई  की सुविधा मिल सकेगी।