कैसे खुलते हैं भगवान केदारनाथ के कपाट? क्या है सदियों से चली आ रही परंपरा?

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ऋषिकेश,उत्तराखंड के कण-कण में भगवान शिव का वास है, यही कारण है जिस तरफ भी नजर दौड़ाएं भगवान शिव के शिवालय नजर आते हैं । पूरा हिमालय भगवान शिव का निवास है, हर भोले भंडारी सभी भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करते हैं , आज हम आपको बताते हैं ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग भगवान केदारनाथ के बारे में जिनकी मान्यता पूरे विश्व में हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए अति महत्वपूर्ण है।

बाबा केदारनाथ धाम के कपाट खुलने और बंद होने में उत्सव डोली यात्रा का विशेष महत्व होता है माना जाता है कि वह भाग्यशाली लोग होते हैं। जो तीन दिन की इस पैदल यात्रा में शामिल होकर इस यात्रा के साक्षी बनते हैं मान्यता है कि अदभुत, अलौकिक और फलदायी भगवान आशुतोष की डोली यात्रा पुण्य की यात्रा है, जो बाबा केदार के कपाट बंद होने और खुलने के समय होती है कहते हैं।

शीतकाल की शुरुआत में पूरा केदारनाथ धाम बर्फ से आच्छादित हो जाता है और यह समय देव पूजा का होता है और भगवान आशुतोष अपने प्रवास पर चले जाते हैं। बाबा केदार की डोली 26 अप्रैल से शुरू होगी ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ में भैरव पूजा के साथ, अगले दिन सुबह डोली प्रस्थान के लिए तैयार होती है, 26 अप्रैल 10 बजे प्रात: ओकारेश्वर मंदिर उखीमठ से श्री केदारनाथ भगवान की डोली धाम को प्रस्थान कर प्रथम पड़ाव फाटा पहुंचेगी। 27 अप्रैल,शुक्रवार को उत्सव डोली फाटा से गौरीकुंड को प्रस्थान करेगी।रात्रि विश्राम गौरीकुंड ।

• 28 अप्रैल, शनिवार को शायंकाल पंचमुखी डोली श्री केदारनाथ धाम पहुंच जायेगी। 29 अप्रैल, रविवार को प्रात: 6 बजकर 15 मिनट पर मेष लग्न में श्री केदारनाथ मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं हेतु दर्शनार्थ खुलेंगे।
द्वादश ज्योर्तिलिंगों में ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग के रूप में भगवान शिव हिमालय स्थित केदारनाथ धाम में विराजमान है। वर्तमान में 1008 भीमा शंकर लिंग केदारनाथ के 336वें रावल हैं। अनादिकाल से कपाट खुलने के मौके पर भगवान शिव की डोली पंचकेदार गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से केदारनाथ धाम ले जाई जाती है जबकि कपाट बंद होने पर यही डोली दोबारा ऊखीमठ लाई जाती है।

केदारनाथ भगवान की दो मूर्तियां है। एक भोग मूर्ति है जिसे केदरनाथ में पुजारी निवास में रखा जाता है और यहीं इसकी पूजा होती है और दूसरी भगवान केदारनाथ की पंचमुखी उत्सव मूर्ति है। इसमें भगवान शिव के सत्योजात, वामदेव, अघोर, ततपुरुष और ईशान रूपी मुख हैं। इस मूर्ति के पीछे वाले भाग में शेषनाग बना है जबकि सिर पर स्वर्णमुकुट लगाया जाता है। इस बार केदारपुरी का नजारा काफी बदला-बदला दिखाई देगा क्योंकि 2013 के बाद से निर्माण कार्य बड़ी तेजी के साथ किए जा रहे हैं और यात्रियों के लिए विशेष सुविधाओं के साथ साथ लेजर शो का भी आयोजन किया जा रहा है जिससे श्रद्धालुओं को दर्शन के साथ साथ यहां के पौराणिक महत्व की भी जानकारी मिलेगी